धार्मिक संस्थाओं के सामाजिक दायित्व
bhopal,  Social Responsibilities of Religious Institutions

सुन्दर सिंह राणा

भारतीय समाज में धर्म, दैनिक जनजीवन के इर्द-गिर्द घूमता है। मंदिर आम जीवन में धर्म का प्रमुख प्रतीक है। धर्म के प्राचीनतम प्रतीकों में मंदिर सर्वाधिक महत्व रखता है। भारत में मंदिर हिन्दू-धर्म के अलावा जैन समुदाय की आस्था का भी प्रतीक है। देश में भव्य जैन मंदिर अपनी उपस्थिति सकारात्मक दायित्वों के साथ सदैव से दर्ज कराते रहे हैं। आमजन और मंदिर के बीच गहरा भावनात्मक सम्बन्ध है।

समाज तीव्र गति से बदल रहा है। लोगों की व्यस्तताएं बढ़ी है इसलिए जरूरी है, मंदिर को समुदाय के बीच नये आकर्षणों के साथ स्थापित करने की। भागदौड़ भरे व्यस्ततम जीवन में पूजा-पाठ के साथ मंदिर एक सहयोगी संस्था के रूप में मजबूत सामुदायिक केन्द्र बनकर कैसे उभरे, यह हमें जैन मंदिरों की संचालन व्यवस्था से सीखने की आवश्यकता है। जहां मंदिर जन जरूरतों की पूर्ति़ का माध्यम बनकर उभरा है। सुबह-सायं प्रसाद तो पाते ही हैं, वहीं भोजन की भी व्यवस्था नियमित रूप से गुरुद्वारों के लंगर की तरह रहती है। साधारण भोजन मिलता है जो बहुद कम प्रतीकात्मक कीमत में उपलब्ध रहता है। घर में अकेले रह रहे बुजुर्गों हेतु टिफिन सेवा की सप्लाई का प्रबंध है। नियमित रूप से रोगियों के लिए चिकित्सा और दवा की पूरी सुविधा है, जहां बाजार भाव से आधी कीमत पर सभी तरह की दवाइयां उपलब्ध हैं। आपको अपने शरीर की किसी तरह की जांच/परीक्षण कराना है तो ब्लड सैम्पल से लेकर रिपोर्ट तक आपको मंदिर में ही उपलब्ध कराने की पूरी व्यवस्था है। शारीरिक व्यायाम के लिए जिम की सुविधा है। सुबह-शाम व्यायामशाला जारी है। जरूरतमंद लोगों के लिए फिजियोथिरेपी केन्द्र आधुनिक मशीनों और सुविधाओं सहित संचालित हो रहे हैं। जैन मंदिरों में यह सब सेवाएं नियमित रूप से सुबह पांच से प्रारम्भ होकर रात्रि 9 बजे तक सुचारू ढंग से संचालित रहती है।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र में जाकर आप किसी भी मंदिर में इन नियमित लाभों को ले सकते हैं। साथ ही जरुरतमंद लोगों को मंदिर द्वारा प्रदान इन सेवाओं का लाभ लेने को प्रेरित कर सकते हैं। वास्तव में मंदिरों की असली भूमिका ऐसी मानवीय जरूरतों की पूर्ति करना भी है। जो समाज के जरूरतबंद तबके के जीवन संघर्षों को कुछ कम करने में मददगार बन सके। वहीं समुदाय के उन लोगों को कुछ सुविधाप्रद वातावरण उपलब्ध कराना भी हो जो नियमित रूप से मंदिर से जुड़े हैं। ताकि उस निरन्तरता की कुछ सार्थकता भी साबित हो सके और आस्थावान लोग अपने समय का सदुपयोग कर कुछ जरुरतों को इसी के माध्यम से पूरा कर पाए। सही मायने में मंदिर की सर्वोत्तम उपयोगिता यही है।

हमारे देश में बहुत से ऐसे मंदिर हैं जो इस दिशा में अहम् योगदान कर सकते हैं। अपनी सम्पत्ति को सकारात्मक कार्यों में संलग्न कर समाज के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षावाले स्कूल, आधुनिक सुविधाओं वाले हॉस्पिटल्स और समाज के ऐसे तबके को जो किन्हीं वजहों से तिरस्कृत हैं, उनके लिए अनाथ आश्रम और वृद्ध आश्रम स्थापित कर सामाजिक पुर्ननिर्माण में आगे बढ़कर योगदान कर सकते हैं। देश में अभी भी अधिकांश मंदिर किसी भी तरह के सामाजिक सरोकार से नहीं जुड़ पाए हैं, हमारे नेतृत्व को चाहिए कि मंदिरों को अपना सकारात्मक सहयोग करने के लिए प्रेरित करे। हमारे मंदिरों को अपनी परम्पराओं के साथ आधुनिक मूल्यों का मान करना चाहिए। जैसे केरल के सबरीमाला मंदिर के मामले में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप महिलाओं को मंदिर जाने की इजाजत दे रहा है तो इसका सबको स्वागत करना चाहिए। मंदिर आधुनिक समाज में न सिर्फ पूजास्थल तक सीमित रह सकते हैं बल्कि उन्हें एक मजबूत सामुदायिक केन्द्र की भूमिका में स्वयं को पुर्नस्थापित करना होगा। मंदिर धार्मिकता के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक जागरण का भी दायित्व निभाएं। समाज के लिए शिक्षण के केन्द्र बनकर उभरे।

मंदिर भारतीय समाज में प्राचीनतम् और मजबूत व्यवस्था है। हमें इसके महत्व को पहचानना चाहिए। भारत में 400 ईसा पूर्व से मंदिर के अवशेष मौजूद हैं। मंदिर सदियों से हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा रहा है। भारतीय समाज बहुत ही उदार स्वभाव वाला समाज रहा है। यहां हर समुदाय के अपने-अपने मंदिर हैं। शिव में आस्था रखने वाले शैव मंदिर और विष्णु को मानने वाले वैष्णव मंदिर तथा देवी में आस्था वाले शक्ति मंदिर स्थापित करते रहे हैं। भारत में मंदिर सामाजिक-धार्मिक संगम का पवित्र स्थल की भूमिका में रहे हैं। हिन्दू मंदिर अपने आराध्य के दर्शनार्थ एक पवित्र केन्द्र हैं। धार्मिक स्थल की अपनी विशिष्ठ महत्ता होती है। किसी भी धार्मिक स्थल पर उस धर्म के अनुयायी पूजा-पाठ करने आते हैं। यह निरन्तता समाज को जोड़े रखने में महत्पूर्ण भूमिका निभाती है।

मंदिर हमारे लिए नियमित धार्मिक अभ्यास का केन्द्र है। धर्म हमारे सामाजिक अभ्यासों के लिए ईंधन प्रदान करता है, जिससे हमारा समाज संचालित होता है। समाज द्वारा धार्मिक उत्सवों, तीज-त्यौहारों और विभिन्न सांस्कृतिक क्रियाकलापों को इसी पृष्ठभूमि में आयोजित और संचालित किया जाता रहा है। आधुनिक समय में समाज में जो बदलाव आए हैं और मानवीय जरूरतें अपनी प्राथमिकता बदल रही है, ऐसे में धर्म को इन बदली स्थितियों/परिस्थियों को ध्यान में रखकर नयी भूमिकाओं को धारण करना होगा और अपने समाज को सशक्त समाज के रूप में स्थापित करना होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Dakhal News 29 March 2020

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