डाॅ. अम्बेडकर और सीएए
bhopal, Dr. Ambedkar and CAA
वीरेन्द्र सिंह परिहार
 
मोदी सरकार द्वारा देश में नागरिकता संशोधन विधेयक जिसे संक्षेप में सीएए कहते हैं, वह 10 जनवरी 2020 से लागू कर दिया गया। इस कानून के तहत 31 दिसम्बर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए सभी अल्पसंख्यकों यानी हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन और यहाँ तक कि ईसाई भी भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं। यद्यपि कांग्रेस समेत कई विरोधी दल एवं देश का एक बड़ा वर्ग इस कानून का उग्र विरोध कर रहा है। उनके द्वारा कहा जा रहा है कि यह डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के बनाए संविधान के विरूद्ध है, क्योंकि यह धर्मनिरपेक्षता और समानता जो भारतीय संविधान का आधार है, उसका उल्लंघन करता है। ऐसी स्थिति में गौर करने की बात यह है कि यदि डाॅ. अम्बेडकर आज जीवित होते तो इस अधिनियम पर उनकी क्या प्रतिक्रिया होती?
 
वस्तुतः 1947 में देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान में हिन्दू और दूसरे अल्पसख्यकों के साथ कैसा व्यवहार होगा, यह दूरदृष्टा एवं मनीषी डाॅ. अम्बेडकर को उसी वक्त पूर्वाभास हो गया था। कोई कह सकता है- यह कैसे? यह इस तरह से कि देश के बंटवारे के वक्त ही डाॅ. अम्बेडकर ने जनसंख्या की अदला-बदली की बात कही थी। यानी पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं एवं अन्य अल्पसंख्यकों को भारत आ जाना चाहिए, या भारत में लेना चाहिए और मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाना या भेज देना चाहिए। डाॅ. अम्बेडकर सभी दलितों को भी जो पाकिस्तान में फंस गए थे, उनको कहा था कि उनको किसी भी तरीके या उपाय से पाकिस्तान से भारत आ जाना चाहिए। उन्होंने यहाँ तक कहा था कि मुसलमानों या मुस्लिम लीग पर दलितों का भरोसा उनके लिए घातक साबित होगा। इसीलिए उन्होंने सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, तब निजाम के राज हैदराबाद में रह रहे दलितों को भी चेतावनी देते हुये कहा था कि उच्चवर्गीय हिन्दुओं को नापसंद करने के चलते मुसलमानों के पाले में खड़ा होना एक बड़ी भूल होगी। (डाॅ.अम्बेडकर लाइफ एण्ड मिशन, धनंजय वीर पेज 399) कांग्रेस पार्टी और पं. जवाहरलाल नेहरू की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों के चलते जालंधर में 19 अक्टूबर 1951 में डाॅ. अम्बेडकर ने पंडित नेहरू के लिए कहा था कि वह पागलपन की हद तक मुस्लिमों के साथ हैं और अनुसूचित जातियों के लिए उनके हृदय में कोई स्थान नहीं है। (वही पृ. 938) डाॅ. अम्बेडकर इस बात पर विश्वास करते थे कि यह असंभव है कि एक गैर मुस्लिम एक इस्लामिक देश में रह सके। उनका कहना था इस्लाम एक बंद समुदाय है और मुस्लिम और गैर मुस्लिम में यह अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। मुसलमानों का भ्रातृत्व वैश्विक व्यक्तियों के लिए न होकर मात्र मुस्लिम का मुस्लिम के लिए है। उनका स्पष्ट मानना था कि मुस्लिम कानून के तहत दुनियाँ दो कैम्पों (शिविरों) में विभाजित है- दारूल-इस्लाम और दारूल हरब। दारूल-इस्लाम के मायने जो देश मुस्लिमों द्वारा शासित हैं, दारूल हरब के सामने जहाँ मुसलमान निवास तो करते हैं परन्तु शासन उनका नहीं रहता। इस तरह से भारत हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों का सामान्य तौर पर मातृभूमि नहीं है, जहाँ वह बराबरी के साथ रह सके। बल्कि वह मुसलमानों की भूमि तभी होगी-जब मुसलमानों द्वारा शासित होगी। इस तरह से जबतक वह भूमि दारूल-इस्लाम नहीं बन जाती तब तक वह दारूल-हरब ही रहेगी। इसे किसी भी तरह जीतकर दारूल-इस्लाम बनाना है। (सिर्फ मुस्लिमों के लिए)
जनसंख्या की अदला-बदली के सम्बन्ध में डाॅ. अम्बेडकर का कहना था कि हिन्दू या कोई गैर मुस्लिम, मुसलमानों की दृष्टि से काफिर है, जो सम्मान के योग्य नहीं है। ऐतिहासिक उदाहरण देते हुये उन्होंने बताया कि प्रमुख मुस्लिम हमेशा कट्टर और जिहादी मुस्लिमों का ही समर्थन करते हैं। इसीलिए डाॅ. अम्बेडकर का स्पष्ट मानना था कि पाकिस्तान में गैर मुस्लिमों को न्याय नहीं मिल सकता। इसीलिए उनका कहना था कि भारत और पाकिस्तान के बीच हिन्दुओं और मुसलमानों की जनसंख्या की अदला-बदली स्वैच्छिक ढंग से ग्रीस और बुल्गारिया की तर्ज पर होनी चाहिए।
 
लोगो को पता ही होगा कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए कानून का सबसे ज्यादा फायदा दलितों को होगा क्योंकि देश के बंटवारे के वक्त यह बड़ी तादाद में पाकिस्तान से नहीं निकल पाए। पाकिस्तान में इन्हें सफाई और ऐसे ही कामों के लिए जबरिया रोक लिया गया था। पर पंडित नेहरू ने इस सम्बन्ध में कोई पहल नहीं की। अब-जब मोदी सरकार यह कानून लेकर आई है तो सनक की हद तक मुस्लिम पक्षधरता के चलते कांग्रेस इसका बेतुका विरोध करती है जबकि मोदी सरकार के पूर्व यह उनके पक्ष में थी। यह बात अलग है कि मुस्लिम वोटबैंक के खौफ के चलते वह यह कानून नहीं ला सकी। कांग्रेस की बात अलग है, अपने को दलितों का मसीहा कहने वाला मायावती और भीम आर्मी के चन्द्रशेखर उर्फ रावण भी इसके तीव्र विरोध में हैं। समस्या वहीं मुस्लिम वोट बैंक। अब असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता जब डाॅ. अम्बेडकर के संविधान का हवाला देकर इस कानून का विरोध कर रहे हैं, तो उन्हें पता होना चाहिए कि यदि डाॅ. अम्बेडकर का वश चलता तो वह देश के बंटवारे के वक्त ही यह समस्या समाप्त कर देते और ओवैसी जैसे नेता पाकिस्तान में होते क्योंकि डाॅ. अम्बेडकर के लिए वोटबैंक नहीं वरन देश महत्वपूर्ण था।
 
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
Dakhal News 17 January 2020

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