विसंगतियों का आरक्षण
आरक्षण

 

ओबीसी जातियों के उपवर्गीकरण की दिशा में आगे बढ़ने के साथ ही आरक्षण की बढ़ती मांगों का भी समाधान निकालने की कोशिश हो।

अन्य पिछड़े वर्गों की जातियों के उपवर्गीकरण की संभावनाओं का पता लगाने के लिए गठित रोहिणी आयोग की ओर से मिले संकेत यदि यह रेखांकित कर रहे हैं कि ओबीसी आरक्षण का लाभ चुनिंदा जातियों ने उठाया है तो इसमें हैरानी नहीं। इस स्थिति को बयान करने वाले आंकड़े उपलब्ध भले न हों, लेकिन हर कोई यह जान रहा है कि हकीकत क्या है। यह विसंगति केवल ओबीसी आरक्षण तक ही सीमित नहीं है। यही हालत अनुसूचित जातियों व जनजातियों को मिले आरक्षण में भी है। अब जब ओबीसी आरक्षण में उपवर्गीकरण की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं, तो यह जरूरी हो जाता है कि एससी-एसटी आरक्षण में भी ऐसा हो। नीति-नियंता और राजनीतिक दल इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि यह आरक्षण में विसंगति, अर्थात सभी पात्र जातियों को समुचित लाभ न मिल पाने का ही प्रतिफल है कि जहां ओबीसी की कुछ जातियां अनुसूचित जाति का दर्जा चाह रही हैं, वहीं कुछ अनुसूचित जातियां जनजाति के रूप में अपनी गिनती कराना चाहती हैं।

ओबीसी आरक्षण का अधिकतम लाभ उठाने वाली जातियां आमतौर पर वही हैं, जो सामाजिक एवं आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत सक्षम हैं। इन्हें पिछड़ों में अगड़े की संज्ञा दी जा सकती है। अलग-अलग राज्यों में पिछड़ों में अगड़े का दर्जा रखने वाली जातियां भिन्न्-भिन्न् हैं, लेकिन वे हैं सभी राज्यों में। इनमें से कुछ जातियां तो राजनीतिक रूप से भी प्रभावी हैं। इसके चलते उनका शासन में भी दबदबा है और कहीं-कहीं तो प्रशासन में भी। इसका कोई मतलब नहीं कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर प्रभावी जातियां आरक्षण का लाभ उठाती रहें।

यदि समर्थ जातियों के लोग आरक्षण का लाभ लेते रहेंगे तो वे कहीं न कहीं अन्य ऐसी जातियों के अधिकारों का हरण ही करेंगे, जो आरक्षण के दायरे में होने के बावजूद उसके न्यूनतम लाभ से वंचित हैं। समय आ गया है कि न केवल ओबीसी आरक्षण के तहत आने वाली जातियों का उपवर्गीकरण हो, बल्कि उन जातियों को आरक्षण के दायरे से अलग भी किया जाए, जो अब आरक्षण की पात्र नहीं रह गई हैं। हालांकि क्रीमीलेयर की व्यवस्था इसी मकसद से की गई है, लेकिन उससे अभीष्ट की पूर्ति नहीं हो पा रही है। पता नहीं ऐसी कोई व्यवस्था एससी-एसटी आरक्षण में क्यों नहीं है?

जैसे यह एक तथ्य है कि भारतीय समाज को समरस बनाने के लिए आरक्षण की आवश्यकता है, वैसे ही यह भी कि इस व्यवस्था में कई विसंगतियां हैं। आरक्षण का लाभ कुछ समर्थ जातियों के खाते में जाना केवल एक विसंगति है। अन्य विसंगतियों की चर्चा इसलिए नहीं होती, क्योंकि आरक्षण को राजनीतिक रूप से एक नाजुक मसला बना दिया गया है। परिणाम यह है कि कुछ ऐसी जातियां भी आरक्षण की मांग कर रही हैं, जो इसके लिए पात्र नहीं हैं। विडंबना यह है कि वे आरक्षण की अपनी मांग मनवाने के लिए हिंसक तौर-तरीके भी अपना रही है। बेहतर यही होगा कि ओबीसी जातियों के उपवर्गीकरण की दिशा में आगे बढ़ने के साथ ही आरक्षण की बढ़ती मांगों का भी कोई समाधान निकालने की कोशिश हो। यह कोशिश सामाजिक न्याय की अवधारणा के तहत ही होनी चाहिए।

Dakhal News 16 August 2018

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