बीसीसीआई आएगा सूचना कानून के दायरे में
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भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में लाने की विधि आयोग की सिफारिश्ा महत्वपूणर््ा अवश्य है, लेकिन वह तभी किसी काम की साबित होगी जब सरकार उसे मानने के लिए तैयार होगी। चूंकि विधि आयोग की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं, इसलिए कहना कठिन है कि सरकार विधि आयोग की रपट को लेकर किस नतीजे पर पहुंचती है, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि संप्रग सरकार के समय भी खेल विधेयक के जरिये बीसीसीआई को जवाबदेह बनाने की पहल परवान नहीं चढ़ी थी। बीसीसीआई आरटीआई के दायरे में आने से इस आधार पर बचती रही है कि वह एक निजी संस्था है। यह एक कमजोर तर्क है, क्योंकि एक तो बीसीसीआई के तहत क्रिकेटर देश का प्रतिनिधित्व करते हैं और दूसरे, उसे टैक्स में रियायत के अतिरिक्त परोक्ष तौर पर सरकारी सुविधाएं भी मिलती हैं। कोई भी खेल संस्था केवल इस आधार पर खुद को निजी नहीं बता सकती कि उसे सरकार से कोई सीधा अनुदान नहीं मिलता। इस मामले में विधि आयोग का यह निष्कर्ष तो सही है कि अन्य खेल संगठनों की तरह बीसीसीआई भी है और उसे भी इन संगठनों की तरह आरटीआई के दायरे में आना चाहिए, लेकिन इस कानून के दायरे में आने का मतलब देश की इस सबसे धनी खेल संस्था का सरकारीकरण नहीं होना चाहिए। इस मामले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अन्य खेल संगठन भले ही स्वायत्त संगठन कहे जाते हों, लेकिन वे सरकारी दखल से मुक्त नहीं हैं। आम धारणा है कि देश में इसी कारण खेल और खिलाड़ियों का सही तरह विकास नहीं हो पाया है। न तो इस धारणा को निराधार कहा जा सकता है और न ही इस तथ्य की उपेक्षा की जा सकती है कि सुप्रीम कोर्ट की कमेटी तमाम प्रयासों के बाद भी बीसीसीआई के कामकाज को सुधार नहीं सकी है। ध्यान रहे कि यह सुप्रीम कोर्ट का ही निर्देश था कि विधि आयोग इसका आकलन करे कि बीसीसीआई को आरटीआई के दायरे में लाया जा सकता है या नहीं? 

नि:संदेह विधि आयोग ने अपना काम कर दिया, किंतु यदि सरकार उसकी सिफारिश पर अमल हेतु आगे बढ़ती है तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि बीसीसीआई के कामकाज में पारदश्रिता व जवाबदेही तो आए, लेकिन उसकी कार्यप्रणाली में अनावश्यक हस्तक्षेप न हो। खुद बीसीसीआई के हित में यही है कि वह अपनी कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनाए। वह स्वयं को एनजीओ यानी गैर-सरकारी संगठन बताकर बहुत दिनों तक अपना बचाव नहीं कर सकती। उसे इसका आभास होना चाहिए कि यह उसकी अपनी गलतियों व कमजोरियों का ही नतीजा है कि सुप्रीम कोर्ट को उसके काम में दखल देना पड़ा। फिलहाल यह कहना कठिन है कि विधि आयोग की सिफारिश का क्या होगा, लेकिन आम जनता को इस सवाल का भी जवाब मिलना चाहिए कि सियासी दल आरटीआई के दायरे में आने को तैयार क्यों नहीं? आखिर उनका काम पारदर्शी क्यों नहीं होना चाहिए? इस सिलसिले में यह भी ध्यान रहे कि खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कानून के दायरे में आने से इनकार किया था।

 

Dakhal News 23 April 2018

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