नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
रामनाथ कोविंद

भारत को अपना नया राष्ट्रपति मिल गया है। वैसे राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही ये साफ हो गया था कि अगले पांच वर्ष के लिए राष्ट्रपति भवन में रामनाथ कोविंद ही विराजमान होंगे। दरअसल, इस हकीकत से विपक्ष और विपक्षी उम्मीदवार मीरा कुमार भी वाकिफ थे। तभी उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव को वैचारिक संघर्ष का रूप देने की कोशिश की। उन्होंने इस चुनाव को भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा के विरोधी दलों की गोलबंदी का मौका बनाने का प्रयास किया। लेकिन परिणाम से स्पष्ट है, इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। उल्टे उनके अंदर की कमजोरियां उभरकर सामने आ गईं। नीतीश कुमार तो आरंभ में ही विपक्षी जमावड़े से छिटक गए। अब सामने आए मतदान का संकेत है कि कई राज्यों में विपक्ष अपने सभी सदस्यों को साथ नहीं रख पाया। वहां कोविंद को भाजपा की ताकत से ज्यादा वोट मिले। दरअसल, कोविंद को प्रत्याशी बनाकर भाजपा नेतृत्व ने विपक्षी एकता या 2019 के आम चुनाव के लिए भाजपा विरोधी राष्ट्रव्यापी महागठबंधन बनने की संभावनाओं की हवा निकाल दी। 

बहरहाल, फौरी सियासत इस चुनाव का सिर्फ एक पहलू है। राष्ट्रपति चुनाव को महज दलगत समीकरण के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। राष्ट्रपति देश के संवैधानिक प्रमुख होते हैं। उन्हें संवैधानिक मूल्यों का प्रतीक एवं संविधान का संरक्षक समझा जाता है। देश के प्रथम नागरिक के रूप में वे देशवासियों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। कोविंद जब 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे, तब उनके कंधों पर उपरोक्त सारी जिम्मेदारियां आ जाएंगी। बिहार के राज्यपाल के रूप में उनके रिकॉर्ड को देखते हुए इसमें कोई शक नहीं कि वे इन दायित्वों को बखूबी निभाएंगे। 

उल्लेखनीय है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी जमात से अलग होने का कारण कोविंद के साथ काम करने के अपने बेहतर तजुर्बे को बताया था। कहा था कि राज्यपाल के रूप में कोविंद ने निष्पक्ष आचरण किया। अब देश की यही अपेक्षा है कि बतौर राष्ट्रपति कोविंद अपने उसी उदाहरण का अनुपालन करेंगे। इस उम्मीद की वजह यह भी है कि कोविंद कानून के जानकार हैं और उनका व्यक्तित्व विवादों से परे रहा है। लोकतंत्र में स्वस्थ परंपराएं बेहद अहम होती हैं। पिछले राष्ट्रपतियों ने ऐसी कई रवायतों को कायम किया, जिससे देश के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति के लिए मर्यादाएं एवं मिसालें तय हुईं। पिछले अनेक राष्ट्रपतियों ने अपनी खास विरासत निर्मित की। वो राष्ट्रपति ऐसा बेहतर ढंग से कर पाए, जिन्होंने अपने निर्णयों को अपनी पुरानी पार्टी के हितों या विचारों से प्रभावित नहीं होने दिया। राष्ट्रपति से अपेक्षित होता है कि उनकी एकमात्र आस्था संविधान और संवैधानिक उसूलों में हो। कोविंद से भी यही उम्मीद रहेगी। देशभर के निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों ने उनमें भारी विश्वास जताया है। यह विश्वास रखने का ठोस आधार है कि नए राष्ट्रपति इस भरोसे पर खरे उतरेंगे।

 

Dakhal News 24 July 2017

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