चुनाव आयोग से जुड़े मसले केन्द्र-सरकार के हाशिए पर क्यों...?
चुनाव आयोग

उमेश त्रिवेदी

देश के 21 वें मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर गुजरात काडर के पूर्व आयएएस अधिकारी अचल कुमार जोती की नियुक्ति के साथ ही चुनाव आय़ोग की विश्वसनीयता, पारदर्शिता और निष्पक्षता से जुड़े दो बड़े सवाल पंख पसार कर राजनीतिक-फलक पर उड़ने लगे हैं। पहला सवाल ईवीएम में वीवीपीएटी प्रणाली जोड़ कर मतदाताओं को पावती उपलब्ध कराने से संबंधित है, जबकि दूसरा मुद्दा चुनाव-आयुक्तों की नियुक्ति-प्रक्रिया से जुड़ा है, जिसके नियम सुनिश्चित नही हैं। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि केन्द्र सरकार चुनाव आयोग में नियुक्ति के लिए कोई कानून नहीं लाती है, तो सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप करेगा। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका विचाराधीन है, जिसमें चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए नेता,प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश का एक संवैधानिक पैनल गठित करने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट भी समय-सीमा में इनका निपटारा चाहती है। मोदी-सरकार ने इन मुद्दों को हाशिए पर ही पटक रखा है। फिलवक्त अचल कुमार दूसरे नम्बर के चुनाव आयुक्त हैं। वरिष्ठता के नाते वो मुख्य चुनाव आयुक्त बने हैं। 

डॉ. नसीम जैदी के स्थान पर जोती की नियुक्ति को लेकर लोगों के कान यूं ही नहीं खड़े हुए हैं। नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री काल में जोती गुजरात के मुख्य सचिव थे। मोदी ने उन्हें 8 मई 2015 को चुनाव आयोग का सदस्य बनाया था। गुजरात से उनकी पुरानी नातेदारी और मोदी-सरकार से उनके रागात्मक-रिश्ते कतिपय आशंकाओं को गहरा रहे हैं। राजनीतिक हलके महसूस कर रहे है कि जोती वीवीपीएटी प्रणाली और नियुक्तियों की प्रक्रियाओं को मोदी-सरकार की मंशाओं के अनुरूप ढीला छोड़ सकते हैं। जोती मात्र 6 माह बाद जनवरी 2018 में रिटायर हो जाएंगे, लेकिन 6 महीनों की यह बाधा-दौड़ प्रशासकीय प्रक्रियाओं को लंबा खींच सकती है। 

गुजरात के ही पूर्व आयपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने ट्वीट पर प्रतिक्रिया दी है कि जोती के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद भारत में स्वतंत्र और स्वच्छ चुनाव को अलविदा कह देना चाहिए। भट्ट की प्रतिक्रियाओं को इसलिए अनसुना नहीं करना चाहिए कि वो मोदी और अचल कुमार जोती की जुगलबंदी से भलीभांति वाकिफ हैं। गुजरात में दंगों के समय संजीव भट्ट की भूमिका से तत्कालीन मोदी-सरकार नाखुश थी। इसलिए उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। 

गुजरात विधानसभा के अलावा 2019 के लोकसभा और महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव का सिलसिला भी तेजी पकड़ रहा है। पिछले दिनों  मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. नसीम जैदी ने मोदी-सरकार को आगाह किया था वो पेपर ट्रेल मशीनों की समयबध्द खरीद के लिए तुरंत धन जारी करे, ताकि 2019 के लोकसभा निर्वाचन में इनका उपयोग हो सके। मौजूदा राजनीतिक माहौल में ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर उठे सवालों का हवाला देते हुए जैदी ने कहा था कि चुनाव मशीनरी की विश्वसनीयता के लिए वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) मशीनों की प्रणाली का उपयोग जरूरी हो गया है। उप्र चुनाव के बाद देश के 16 प्रमुख राजनीतिक दलों ने चुनाव में पारदर्शिता लाने की गरज से मत-पत्र से मतदान की चुनाव प्रणाली अपनाने का आग्रह किया था। 

जैदी के अनुसार 2019 के लोकसभा निर्वाचन में देश के सभी मतदान केन्द्रों को पेपर ट्रेल प्रणाली से जोड़ने के लिए 16 लाख वीवीपीएटी मशीनों की जरूरत होगी। फरवरी 2017 तक आर्डर नहीं देने के कारण सितम्बर 2018 तक ये मशीनें उपलब्ध नहीं हो सकेंगी। डॉ. जैदी ने मार्च 2017 में भी कानून मंत्री से धन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था। वीवीपीएटी के निर्माण के लिए न्यूनतम 30 माह की अवधि जरूरी है। उनका कहना है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल के मद्देनजर वीवीपीएटी मशीनें खरीदने में देर नहीं की जाना चाहिए। क्योंकि चुनाव आयोग भविष्य में ईवीएम के साथ वीवीपीएटी मुहैया कराने के लिए प्रतिबध्द है। ताकि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाई जा सके, मतदाता की निष्ठा को सुरक्षित रखा जा सके और मतदान प्रक्रिया में लोगों का भरोसा बढ़ाया जा सके।

चुनाव आयोग जून 2014 के बाद वीवीपीएटी के बारे में 11 मर्तबा केन्द्र सरकार को पत्र लिख चुका है। सात अप्रैल को सरकार ने लोकसभा में बताया था कि यह प्रस्ताव सरकार के पास विचाराधीन है। इस मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी अलग से पत्र लिखा जा चुका है। वीवीपीएटी पर 3174 करोड़ रुपए की लागत आने वाली है। इस मसले पर चुनाव आयोग की मामूली सी सुस्ती भी लोकतंत्र की विश्वसनीयता के लिए आत्मघाती सिध्द होगी।[लेखक उमेश त्रिवेदी सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।]

Dakhal News 7 July 2017

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