मोदी की राजनीतिक खोज और कोविंद की महानता का इंडेक्स
ramnath kovind

उमेश त्रिवेदी

गणित रामनाथ कोविंद के पक्ष में है और वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ है- शायद इसीलिए विकीपीडिया में एनडीए के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद की मामूली सी लगने वाली प्रोफाइल की स्याही में एकाएक सोना घुलने लगा है और मोदी की बुलन्दियों के आगे बादल हारने लगे हैं। कोविंद के राष्ट्रपति प्रत्याशी होने से पहले तक विकीपीडिया में उनका जीवन-परिचय महज आठ पंक्तियों में लगभग ढाई सौ शब्दों में सिमटा था। राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी घोषित होने के बाद इसमें दो लाइन और चालीस शब्द और जुड़ गए हैं।    

बिहार के राज्यपाल के रूप में कोविंद बड़े आदमी जरूर थे, लेकिन 19 जून के बाद उनके बड़प्पन में एकाएक महानता घुलने लगी है, ज्ञान का आभा-चक्र उनके व्यक्तित्व को जगमगाने लगा, विशेषणों के पुष्प-गुच्छ सजने लगे हैं। पता नहीं, राष्ट्रपति के रूप में प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक-अन्वेषण के पहले रामनाथ कोविंद की महानता का इंडेक्स कितना था, लेकिन मोदी की राजनीतिक-कृपा बरसने के बाद सारे डायनॉमिक्स एकाएक बदल गए हैं। 

राजनीतिक-राडार पर नीचे उड़ान भरने वाले कोविंद के जेट-अपीरियेंस ने हर निगाह को उनकी ओर मोड़ दिया है। सोमवार को मीडिया-सर्च में वो सबसे अव्वल थे। अखबारों की हेड-लाइंस में उनका बखान चौंकाने वाला है। उन्हें चमक-दमक से दूर हमेशा लो-प्रोफाइल रहने वाले गुमशुदा से बिरले राजनीतिज्ञ के रूप में परोसा जा रहा है। खबरों में आरएसएस से उनकी जुगलबंदी की अनुगूंज सुनाई पड़ने लगी है। आरएसएस उन्हें सेवा और साधना के लिए समर्पित हिन्दुत्व के लिए प्रतिबद्ध आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में पसंद करता रहा है। संघ के शीर्ष नेतृत्व में शरीक भैयाजी जोशी और कृष्ण  गोपाल जी जैसी हस्तियों का सम्मान उन्हें हांसिल  है। दलितों के बीच संघ की पैठ बढ़ाने में उनके योगदान का संघ में बड़ा सम्मान है। उनके चयन को संघ की विचारधारा का विस्तार माना जा रहा है। यह उनके राष्ट्रपति प्रत्याशी हो जाने का प्रताप है, राष्ट्रपति भवन की भव्यता का ताप है कि उनके अक्षर-ज्ञान में वैदिक-ऋचाओं का रस छलकने लगा है, उनके शब्दों में सुभाषितों का कोरस खनकने लगा है। मंत्रियों के ट्विटर-अकाउंट पर उनकी गुण-गाथा चहकने लगी है और टीवी बाइट्स में उनका राजनीतिक-अवतार असीम श्रद्धा बटोर रहा है। 

कोविंद और भाजपा का रिश्ता 26 साल पुराना है, वो दिल्ली में वकालत करते थे और उत्तर प्रदेश में भाजपा के महत्वपूर्ण पदों पर बैठकर संगठन की मूक सेवा करते थे। उनकी राजनीतिक हैसियत का अंदाज इसी  बात से लग सकता है कि 2014 में तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा ने उन्हें लोकसभा का टिकट नहीं दिया था। भाजपा में मोदी के अभ्युदय के बाद वो पार्टी में हाशिए पर पहुंच गए थे। वो उप्र  भाजपा में ही कुछ काम करते रहना चाहते थे। भाजपा की राजनीतिक जरूरतों के मद्देनजर मोदी उप्र के किसी दलित नेता को बिहार का राज्यपाल बनाना चाहते थे। संयोगवश राजनीतिक-लाटरी में रामनाथ कोविंद का नाम सामने आया और वे बिहार के राज्यपाल बन गए। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि यही दलित-संयोग उन्हें बिहार के राजभवन से राष्ट्रपति-भवन पहुंचा रहा है।      

कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है, काल का पहिया अपने हिसाब से घूमता और चलता है, लोगों के जतन करने से कुछ हांसिल नहीं होता है, इस बात का किसी के पास कोई जवाब नहीं है कि रामनाथ कोविंद ही भाजपा की ओर से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी क्यों हैं और भाजपा के पितृपुरुष लालकृष्ण आडवाणी राष्ट्रपति की चौखट तक क्यों नहीं पहुंच पा रहे हैं? मुरली मनोहर जोशी इलाहाबाद में संगम के किनारे रामनामी ओढ़े क्यों बैठे हैं? शांता कुमार हिमाचल की वादियों में क्यों गुम हो गए हैं? सोशल मीडिया पर किसी ने यह सवाल पूछा है कि लालकृष्ण आडवाणी के बजाय रामनाथ कोविंद नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकता क्यों हैं? इसी सवाल के नीचे उत्तर भी नत्थी है कि यदि भाजपा का संसदीय बोर्ड आडवाणी को अपना प्रत्याशी चुनता तो इसकी सूचना लेकर नरेन्द्र मोदी को आडवाणी के घर जाना पड़ता, कोविंद की तरह आडवाणी मोदी से मिलने प्रधानमंत्री आवास पर नहीं आते...क्योंकि आडवाणी के सार्वजनिक-जीवन और राजनीतिक साधना की जगमगाहट किसी पद या व्यक्ति का मोहताज नहीं है। लोग रामनाथ कोविंद के चयन में मोदी के राजनीतिक चातुर्य को सराह रहे हैं कि उन्होंने 2019 में भाजपा के विजयश्री की नींव रख दी है, लेकिन उस राजनीतिक कुटिलता को नहीं पढ़ रहे जो पार्टी में एकाधिकार की कूट-दिशाओं की इशारा कर रही हैं।[लेखक उमेश त्रिवेदी सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।]

Dakhal News 22 June 2017

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