Dakhal News
18 April 2024
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का भाषण हो या अफसरों की फाइलें किसानों से संबंधित योजनाओं की फेहरिस्त खासी लंबी होती है। लेकिन ये योजनाएं किसान के खेत-खलियान तक क्यों नहीं पहुंच पाती ये शायद वही सवाल है जिसका जवाब जानने मध्यप्रदेश का किसान सड़कों उतर आया है।
मध्यप्रदेश में किसानों के नाम पर करीब 30 से ज्यादा योजनाएं चल रही हैं। इसमें केंद्र और राज्य सरकार दोनों की योजनाएं शामिल है लेकिन जमीन पर इनका लाभ बहुत कम किसानों को मिल पाता है। यदि ढूंढा जाए तो पूरी तहसील में सिर्फ 5 या 10 ही प्रगतिशील किसान मिलते हैं। मध्यप्रदेश सरकार का इस साल का कृषि बजट 33 हजार 564 करोड़ रुपए है। सरकार अगर कृषि पर करोड़ों रुपए फूंक रही है तो भी किसान आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है।
किसानों को जानकारी देने की जिम्मेदारी ग्राम सेवकों की है लेकिन कई जगह ग्राम सेवक गांव में जाते ही नहीं हैं। इनके बहुत कम किसानों से संपर्क होते है। इनके जरिए ही बीज, खाद या दवा किसानों तक पहुंचती है जिसकी कीमत बाजार से आधी होती है। कई किसान शिकायत भी करते हैं कि ग्राम सेवकों से मिलने वाली कीटनाशक या दूसरी तरह की दवाईयां बहुत कम प्रभावी होती हैं। इस कारण किसान मजबूरी में बाजार से ही कीटनाशक दवा लेता है जिससे उसकी लागत बढ़ जाती है।
योजनाएं
राज्य सरकार कृषि उपकरण,खेत में पाइपलाइन,पंपसेट स्प्रिंकलर, ट्रेक्टर के लिए कीमत में 25 से 50 फीसदी तक की सबसिडी देती है। उद्यानिकी विभाग भी पॉलीहाउस,फल-फूल की खेती, मधुमक्खी पालन, सरंक्षित खेती और सूक्ष्म सिंचाई के लिए सबसिडी देता है।सबसिडी का लाभ लेने के लिए किसानों को ऑनलाइन अपने बैंक खाते की जानकारी के साथ एमपीएफटीएस (मध्यप्रदेश फार्मर सबसिडी ट्रेकिंग सिस्टम) पर रजिस्ट्रेशन करवाना होता है।
ज्यादातर योजनाओं में सबसिडी का पैसा सालभर तक नहीं मिलता है। लिहाजा किसान इसका फायदा नहीं उठा पाता।यदि किसान कुआं खुदवाता है बोरिंग करवाता है तो उसे पंप पर 50 फीसदी की सबसिडी मिलती है। लेकिन यह सबसिडी आवेदन के एक साल बाद मिलती है।
सरकार पॉलीहाऊस लगाने के लिए भी 50 फीसदी सबसिडी देती है। लेकिन यहां भी सबसिडी काफी देर से मिलती है और किसान साहूकार से कर्ज लेकर उसके चंगुल में फंस जाता है
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14 June 2017
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