मोदी के विकास मिशन पर किसान आंदोलन का ग्रहण
rajesh bhatia patrkar

राजेश भाटिया

भरम ही था के सारा बाग़ अपना है तूफान के बाद पता चला सूखे पत्तों पे भी हक गर्म हवाओं का था । 

मध्य प्रदेश में 5 माह की नर्मदा सेवा यात्रा की सफलता उसमें शामिल दिग्गजों की भरमार ने मध्यप्रदेश में राम राज्य की कल्पना को लगभग मूर्त रूप दे दिया था किंतु फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि  नर्मदा जन आंदोलन को साकार करने वाला वही किसान तूफान बनकर रोड पर आ बैठा । जान देता किसान जान लेने पर उतारु हो गया ।।

इसे प्रशासन और सरकार की विफलता ही कहें कि 5 माह तक रोड पर रहने वाली सरकार इस आंदोलन की आहट और किसान की परेशानियों को भाँप न सकी। किसान पुत्र मुख्यमंत्री की सरकार की पुलिस 7 किसानों को गोली देकर जान लेती है फिर उनकी रहनुमा बन जाती है । कार्रवाई के नाम पर मात्र कलेक्टर एसपी का तबादला।

एक करोड़ रुपए की संवेदना राशि की घोषणा और आनन फानन में  प्रदेश में शांति हेतु मुख्यमंत्री का उपवास और उसका खत्म होना, फिर किसानों के हक़ में घोषणाओं की झड़ी ...इस सियासी ड्रामे के बीच प्रदेशऔर हम सबके अपने घोषणावीर मुख्यमंत्री शायद किसान और आम आदमी के उस दर्द को समझने में नाकाम रहे कि घोषणाओं के अमलीजामा की वास्तविक हकीकत कुछ और है।

प्रदेश में हावी अफसरशाही से नेता मंत्री और आमजन सभी दुखी हैं किंतु इस नब्ज को शिवराज सरकार समझ कर भी समझ नहीं पाई । भारतीय जनता पार्टी के अपने कद्दावर नेताओं के बयान प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी तंत्र के हावी होने की खबर बयां करते है।

मोदी सरकार की 3 वर्ष की ऐतिहासिक उपलब्धियां और उसके  जश्न की मिठास में शिवराज के प्रदेश से शुरू हुए किसान आंदोलन ने कड़वाहट की कुछ बूंदें अवश्य डाली है। प्रदेश से शुरू हुआ किसान आंदोलन अब देशव्यापी रूप ले चुका है 16 जून को देशभर में बंद का ऐलान ,  देश के अन्य राज्यों में फ़ैलते किसान आंदोलन  और उसके परिणाम आने वाले समय में मोदी सरकार के लिए कड़वाहट भरे होंगे । मृत पड़ी कांग्रेस के लिए यह किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है ।

आनन-फानन में राहुल का मंदसौर दौरा और शिवराज का मंदसौर न जाना , दोनों ऐसे सवाल है जिसका अर्थ सभी जानते हैं किंतु कतिथ सलाहकारों के आगे नतमस्तक शिवराज सरकार को शायद यही पसंद है।

विकास, उपवास और ईवेंट के बीच सरकार की घोषणाओं ने मरहम का तड़का अवश्य लगाया है किंतु किसान नेता शिव शर्मा "कक्काजी" को नकारना आने वाले समय में शिवराज सरकार के लिए भारी होगा, बहरहाल मोदी के सफल तीन वर्ष की उपलब्धियों पर किसान आंदोलन ने देश ही नहीं विदेशी मीडिया में भी पलीता लगा दिया है। बीजेपी शासित राज्यों में आने वाले समय में किसान आंदोलन की गूँज सुनाई देगी।

मध्यप्रदेश की शिव राज सरकार के लिए यह पंक्तियाँ उचित प्रतीत होतीं हैं  शब्दों का शोर तो कोई भी सुन सकता है ....खामोशियों की आहट सुनो तो कोई बात है.....! [लेखक राजेश भाटिया इनसाईट टीवी न्यूज़ के संपादक हैं ]

Dakhal News 12 June 2017

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