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23 April 2024तीन तलाक: अपने ही नेताओं की बदौलत धूल चाटती कांग्रेस
उमेश त्रिवेदी
जहां यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक-कुशाग्रता और चालाकी है कि उन्होंने तीन तलाक के मुद्दे को राजनीति से दूर रखने की दलीलें देकर घोर राजनीतिक बना दिया है, वहीं यह कांग्रेस की राजनीतिक-मूढ़ता का परिचायक है कि वो खुद को तीन तलाक के राजनीतिक दुष्परिणामों से दूर ऱखने में पूरी तरह असफल सिध्द हो रही है। तीन तलाक के मुद्दे पर कांग्रेस का रुख भाजपा की तरह साफ और सीधा नहीं है। गोल-मोल दलीलों के सहारे राजनीतिक लिजलिजेपन के साथ वो इस मुद्दे की ओर पीठ फेरकर खड़ी है। इससे आगे, सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की विरोधाभासी भूमिकाओं के कारण तीन तलाक के मुद्दे पर राजनीतिक नफे-नुकसान का उसका गणित गड़बड़ा रहा है। कपिल सिब्बल की पहचान पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील के बनिस्बत कांग्रेस नेता के रूप में बड़ी है। उनका पर्सनल लॉ बोर्ड की पैरवी करना कांग्रेस को भारी पड़ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, बहैसियत आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील, कांग्रेस नेता कपिल सिब्बपल तीन तलाक को बरकरार ऱखने के लिए जी-जान से जिरह कर रहे हैं, वहीं बहैसियत एमिकस क्यूरी यानी न्याय-मित्र के नाते कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद तीन तलाक के मामले में इस्लाम की मान्यताओं पर जमा धुंध साफ करने में सुप्रीम कोर्ट की मदद कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सलमान खुर्शीद को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था। दलीलों के बाजार में दोनों वकीलों की जिरह की दिशाएं भिन्न हैं।
सुप्रीम कोर्ट में चौथे दिन मामला इसलिए सुलग उठा कि दलीलों को पुख्ता बनाने के चक्कर में सिब्बल कह बैठे की तीन तलाक का मामला भी भगवान राम की जन्म-स्थली अयोध्या जैसा लोगों की आस्था से जुड़ा है। यदि हिन्दू की आस्था के मद्देनजर राम जन्म-भूमि पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए, तो वैसे ही तीन तलाक पर सवाल उठाना सही नहीं हैं। सिब्बल ने दलीलों की हद को बढ़ाते हुए कोर्ट से यह पूछ लिया कि क्या कल इस बात पर कानून बनाया जा सकता है कि दिगम्बर जैन साधु नग्न नहीं घूमें? आखिर हम कहां-कहां और किस सीमा तक जाकर कानून बनाते रहेंगे?
राम-अयोध्या का जिक्र होने के कारण सोशल मीडिया पर राजनीतिक बयानबाजी सुर्ख हो उठी है। बीजेपी के अलावा सोशल मीडिया पर उठे विरोध के स्वरों ने कांग्रेस को कोने में ढकेल दिया है। दिलचस्प है कि राजनीतिक मंचों पर सिब्बल की दलीलों को जितनी तवज्जो मिल रही है, उतना वजन सलमान खुर्शीद के उन तर्कों को नहीं मिल रहा है, जिसमें वो इस कृत्य को पाप बता रहे हैं। भाजपा को सिब्बल की दलीलों में ज्यादा राजनीतिक-माईलेज मिल रहा है।
सलमान खुर्शीद ने प्रोग्रेसिव-मुस्लिम के नाते सुप्रीम कोर्ट में कहा कि तीन तलाक नैतिक रूप से गलत है। जजों ने सलमान खुर्शीद से सवाल किया था कि जो ईश्वर की नजर में गलत हो, वह मानवीय कानूनों में कैसे सही ठहराया जा सकता है। खुर्शीद का कहना था कि पाप को कानून के जरिए जायज नहीं बनाया जा सकता। इसीलिए भारत के अलावा किसी भी देश में तीन तलाक की परम्परा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट इस्लाम को सुधारने के बजाय उसका सही मतलब लोगों को समझाए। तीन तलाक के खिलाफ सलमान खुर्शीद के ये तर्क जनमत की मनोभावनाओं को व्यक्त करते हैं, लेकिन ये मीडिया की बहस का विषय नहीं हैं।
कांग्रेस के दो धुरन्धर वकीलों की अलग-अलग भूमिकाएं कांग्रेस के राजनीतिक प्रबंधन पर सवाल उठाती हैं। सिब्बल भले ही वकील की हैसियत से कोर्ट में पेश हुए हों, लेकिन उन्हें या कांग्रेस को पता होना चाहिए कि उनकी राजनीतिक-पहचान और कांग्रेस का बैनर उनकी वकालत से बड़ा है। खुद सिब्बल को सोचना था कि जब तीन तलाक के समर्थन में जिरह उनके नाम से गूंजेगी, तो कांग्रेस का कितना नुकसान होगा? सिब्बल ने कांग्रेस के लिए कितनी गहरी राजनीतिक खाई खोद डाली है, इसका अहसास उन्हें होना चाहिए? घटनाक्रम दर्शाता है कि कांग्रेस के नेतृत्व की दूरन्दाजी क्या है? राजनीतिक नफे-नुकसान को जांचने की उनकी मशीनरी कैसी है? कोई समझदार राजनीतिक दल अपने नेताओं को इतने संवेदनशील और ज्वलनशील राजनीतिक मुद्दे के पक्ष-विपक्ष में पैरवी करने की इजाजत कभी नहीं देगा...। अतएव, जो हुआ, वह कांग्रेस का अठारहवां, बीसवां या सौंवा...राजनीतिक आश्चर्य है। गिनती का यह क्रम लिखना मुश्किल है, क्योंकि कांग्रेस हर दिन ऐसे आश्चर्य और कौतुक रचती रहती है...।[ लेखक उमेश त्रिवेदी भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। ]
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18 May 2017
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