मां नर्मदा बेटों की वजह से वेंटीलेटर पर
राघवेंद्र सिंह

राघवेंद्र सिंह

आज जब हम यह लिख रहे हैं तब अंग्रेजियत के हिसाब से पूरी दुनिया मदर्स डे मना रही है। यानि मां जैसा दुनिया में कोई नहीं। जब भगवान स्वर्ग से पृश्वी पर भेज रहे थे उनके साथ रहने की जिद करने वालों से उन्होंने कहा मैं तो साथ रहूंगा नहीं मगर तुम्हारे साथ मां रहेगी जो मेरी तरह तुम्हारा ध्यान रखेगी। जैसे मैं दिल से मांगी गई माफी से हर गुनाह माफ कर देता हूं वैसे ही मां भी करेगी, इसलिए सृष्टि की हर मां को नमन करते हुए यह बात कर रहे हैं। मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों की जीवन दायिनी है मां नर्मदा। इसके अलावा पापियों को तो केवल दर्शनभर करने से ही पाप मुक्त कर देती हैं। उसके जल के आचमन करने का तो पुण्य ही अलग है। इसलिए नालायक बेटों ने उसके जल को लगता है आचमन करने लायक भी नहीं छोड़ा और भविष्य में दर्शन करने लायक भी नहीं छोड़ेगे, क्योंकि दुनिया के जानकार कहते हैं कि जैसा सुलूक मां नर्मदा के साथ हो रहा है आने वाले कुछ सालों में वह खेल का मैदान बन जाएगा। उसके बेटे नर्मदा मैया की जय के साथ हर दिन मार रहे हैं। जयकारे का नाद का दायरा बढता है उसी रफ्तार से उसपर प्रहार की गति बढ़ती है। सोमवार 15 मई को गुजरात के लाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमरकंटक आ रहे हैं। नर्मदा सेवा के समापन पर। यह उद्गम है माई का। मगर अपने आरंभ से कुछ ही किलोमीटर बाद वह सूख चुकी हैं। यह लिखते हुए हाथ कांपते हैं और शब्द ठिठक जाते हैं।  लेकिन सच यही है। कपिलधारा से लेकर कबीरकुंडी के पास आते आते इसके प्रमाण भी मिल जाते हैं। बस यहीं से मां नर्मदा की सांसें उखड़ने की कहानी शुरू होती है, जो पूरे प्रदेश में रेत उलीचने और नोंचने खचोटने तक चल रही है। उसे अब बेटों ने जीवित होने का दर्जा देने का ऐलान किया है। मगर यह तब जब उसके मरने की ताऱीखें लोग तय करने लगे हैं। इसके आभूषण रूपी पहाडों सतपुड़ा,विन्ध्याचल काटकर सड़कें बनाई जा रही हैं और गहनों के रूप में लगे सागौन और साल के वृक्षों को बेतहाशा काटकर फर्नीचल बनाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर एक मां की बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम है। अब नर्मदा माई जगह जगह से कमजोर हैं। धाराएं टूट फूट गई हैं। उसकी शिराओं से रक्तरूपी जल और मज्जा में रेत खत्म सी हो रही है। लुटेरे बेटों ने लीवर,आंत,किडनी,दिल, जिगर सब छलनी सा कर दिया है। उसकी मदद करने वाली सखियां(सहायक नदियां) भी मर रही हैं। अब वे साल में कुछ महीने ही बहती हैं। बेटों के गांव से लेकर शहरों का मलमूत्र मिलना तो एक मां को मंजूर था लेकिन फैक्ट्री और शुगर मिलों का जहर उसे मारे डाल रहा है। हालात खतरनाक हैं और जीवन देने वाली नर्मदा माई वेंटीलेटर पर हैं। नरेन्द्रमोदी उसके उद्गम पर आकर क्या कहेंगे उसे सुनने समझने के लिए माई अपने दिल दिमाग को चैतन्य किए हुए है। मोदी ने भी कुछ नहीं किया तो अमेरिका की एक एजेंसी समेत कई जल के जानकारों ने उसे मरती हुई माई तो घोषित कर ही दिया है। हालात नहीं बदले तो कुछ ही सालों की मेहमान है वह। इस सबके बाद भी मां नर्मदा गुजरात और मध्यप्रदेश को बददुआ नहीं दे रही हैं क्योंकि वो मां जो है। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि नर्मदा माई को नहीं बचाया तो वह खेल का मैदान बन जाएगी। बेटे के मुंह से मां के मरने का यह अघोषित ऐलान भला किसे अच्छा लगेगा लेकिन ऐसा भी हो रहा है। सत्ता पर बारह साल से काबिज एक परमज्ञानी,चुनाव जीतने वाले पराक्रमी बेटे का परमहंसी भाव हो सकता है। दुनिया कई बार बनी है और मिटी है । आगे भी ऐसा होगा। विकास के लिए रेत निकालों मगर आहिस्ता आहिस्ता ताकि तकलीफ न हो। विकास पुरुष बने बेटे इससे ज्यादा क्या संवेदना जता सकते हैं। लोग सवाल कर रहे हैं कि मां को तो मरना ही है। मरणासन्न मां को शायद इसी बात का सबसे ज्यादा दुख होगा कि उसे नोंचने वालों में उसके अपने बेटे की सबसे ज्यादा हैं। अब अपने बड़े बेटे नरेन्द्र मोदी से कुछ करने की आस लगाए होगी जैसे वह लुटेरे बेटों को डराएगा,धमकाएगा नहीं माने तो दंडित भी करेगा। क्योंकि उसके ही जल से तो साबरमती जिंदा हुई है। गुजरात के कच्छ में हरियाली आई है और धरती सोना उगलने लगी है। क्या इसका कोई मोल बेटा नहीं चुकाएगा। अभी तो उसके बचाने का जितना ढिंढोरा पीटा जा रहा है पैसा और श्रम बर्बाद हो रहा है उसे अगर उसके किनारे रहने वाले लोगों पर खर्च किया जाता तो हालात बिगड़ने से बचते। मां के दुख की कहानी यहीं नहीं रुकती। एक साल पहले बहन क्षिप्रा में उसे मिला दिया गया था, अरबों रुपए लगाकर, मगर सिंहस्थ के बाद क्षिप्रा भी नाले की तरह बनी हुई है। पैंतालिस छोटे बड़े शहर और कस्बों की गंदगी उसमें मिल रही है। जनअभियान परिषद ने तो उसमें मिलने वाले गंदे नालों का आंकड़ा सात सौ बताया है। हालत यह है कि उसमें पलने वाले जीव जंतु मर रहे हैं। साफ पानी में रहने वाली दुर्लभ प्रजाति की महाशीर मछली और पातल भी खत्म होने की कगार पर है। नर्मदा माई के दर्शन से पुण्य पाने वाले जल प्रदूषण के कारण अब उसके आचमन के लिए भी तरस रहे हैं। कभी पानी में कई फीट नीचे की रेत चांदी जैसी चमकती थी अब वह दिखना भी दुर्लभ हो गया है। इसलिए तो उसे डाईंग रिभर कहने लगे हैं। यह सुन कलेजा कांप उठता है। उसके प्राण ले रहे पुत्रों से इतना ही कहना है क्या भगवान से जरा भी डर नहीं लगता। नर्मदा माई की तलहटी में कई विजेता सदियों से मिट्टी बने पड़े हैं। कम से कम यह बात तो सबको याद रखनी चाहिए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और प्रधानमंत्री मोदीजी को भी। लिखने को बहुत कुछ है लेकिन अभी दिल भारी है और शब्द भी साथ नहीं दे रहे हैं। मामला मां का है और मदर्स डे भी तो है। तो शायर मुनव्वर राना का शेर तो बनता है...

‘किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई

मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई’ (लेखक IND24 के समूह प्रबंध संपादक हैं)

Dakhal News 16 May 2017

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