तेरा निजाम है कि सिल दे जुबां शायर की....
raj chadhha

राघवेंद्र सिंह

सियासत में कई बार सच बोलने वालों के सिर कलम हो जाया करते हैं। खासतौर से जब ये सच हुकूमत के खिलाफ हो और बोलने वाला दीनदयाल हो। लोग व्यंग्य में कहते हैं कि बड़ा करे तो लीला और छोटा करे तो अपराध। भाजपा में ऐसा ही कुछ हो रहा है। किस्सा है ग्वालियर के वरिष्ठ नेता राज चड्डा का। उन्होंने पिछले दिनों प्रदेश के दीनदयाल यानि कमजोर लोगों के इलाज और भ्रष्ट व्यवस्था में परेशान हो रहे समाज के अंतिम व्यक्ति की चिंता सोशल मीडिया पर जताई थी। जिसमें उन्होंने जो कुछ लिखा था उसका लब्बोलुआब ये है कि भ्रष्ट व्यवस्था को बदलो या हम जैसे कार्यकर्ताओं को बाहर कर दो। इस पर राज चड्डा का कहना है कि पार्टी ने दूसरा विकल्प चुना है। मुझे सात दिन में जवाब देने का नोटिस जारी हुआ है। जिसकी मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं और उसका उत्तर देने में सात मिनट भी नहीं लगाऊंगा। ये सीन है सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी हो रही भाजपा का। जिसमें ताकतवर नेताओं का कोई बाल बांका नहीं कर पाता और दीनदयाल कार्यकर्ताओं को बाहर का रास्ता दिखाने में जरा भी संकोच नहीं होता।

राजनीति में जो घटित हो रहा है उसके लिए संस्कृत और फारसी का मिला जुला शेर बड़ा मौजूं है... ‘टुक टुक दीदम, दम न कसीदम दम जो कसीदम, जहन्नुम रसीदम’ (शायर का नाम नही मालूम के कारण माफ़ी के साथ )

अर्थात जो हो रहा है उसे चुपचाप देखो। उसपर कोई प्रतिक्रिया न दो। यानि सांस भी न लो। अगर कुछ खिलाफ बोला और आंखों की किरकिरी बने तो जहन्नुम भेज दिए जाओगे। तो राज चड्डा के मामले में कहा जा सकता है कि पार्टी ने उन्हें नोटिस देकर बाहर अर्थात जहन्नुम का रास्ता दिखाने की तैयारी कर ली है। श्री चड्डा उन नेताओं में हैं जो पंडित दीनदयाल उपाध्याय से प्रभावित होकर जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी में आए। तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुन्दरलाल पटवा के कार्यकाल में प्रदेश मंत्री रह चुके हैं। दो दफा ग्वालियर भाजपा के अध्यक्ष दो बार पार्षद रहने के साथ ग्वालियर संभाग के प्रवक्ता भी रहे हैं। उन्होंने पार्टी से मिले नोटिस पर अपनी प्रतिक्रिया मशहूर शायर दुष्यंत कुमार के एक शेर के साथ दी है। उन्होंने अपनी फेसबुक पर लिखा है शेर... ‘ तेरा निजाम है कि सिल दे जुबान शायर की,

ये ऐहतियात जरूरी है इस बहर के लिए ’

हो सकता है कि चड्डा जी को नोटिस और उनका जवाब किसी को भी असहज नहीं करे मगर भाजपा में जो हो रहा है उसकी भयावहता को वो जरूर नंगा करता है। चड्डा से जुड़ी घटना को हम हांडी का चावल और पार्टी में बढ़ रही सडांध से जोड़कर देख रहे हैं। इसके पहले भी पूर्व मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने संघ नेताओं के बीच शारदा विहार की एक बैठक में भ्रष्ट अफसरशाही पर खुलेआम 25 प्रतिशत कमीशन लेने का आरोप लगाया था। इसके बाद "नमामिदेवी नर्मदे"  यात्रा को लेकर भी पूर्व केन्द्रीय मंत्री और सांसद प्रहलाद पटेल ने तीखा कटाक्ष किया था। वे कहते हैं कि मुख्यमंत्री के गृह ग्राम जैत के नर्मदा घाट पर जैसे संगमरमर लगा है वैसा सब घाटों पर लग जाए तो कितना अच्छा हो। इसके पूर्व भी श्री पटेल ने डंपर कांड को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे।  खास बात ये है कि उन्होंने आरोपों को वापस नहीं लिया है। इसी तरह वरिष्ठ भाजपा नेता रघुनन्दन शर्मा भी मुख्यमंत्री को घोषणा वीर जैसी उपाधियों से नवाज चुके हैं। कुल जमा कहना ये है कि जो चड्डा जैसे 'दीनदयाल' कार्यकर्ता हैं उनपर नोटिस की तलवार चल जाती है। जबकि पिछले दिनों पार्टी की मोहनखेड़ा प्रदेश कार्यसमिति में गैरहाजिर मंत्री और पदाधिकारियों को पद से हटाने की बात खुद मुख्यमंत्री ने की थी। लेकिन उन को नोटिस दिया जाए उससे पहले चड्डाजी को बाहर करने की तैयारी कर ली गई है। चड्डा कहते हैं वे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई को आगे भी जारी रखेंगे। यह श्री चड्डा से जुड़ी घटना है जो सत्ता और संगठन के प्रति आम कार्यकर्ता के भाव को दिखाती है। हम स्थान का अभाव होने के बावजूद श्री चड्डा की सोशल मीडिया पर लिखी गई टिप्पणी को जस का तस दे रहे हैं।

राजनीति में हो रही घटनाओं की चिट्ठी को पाठकगण तार समझ सकते हैं।

दूसरा सीन कांग्रेस का है। यहां दस साल मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह से दो राज्यों का प्रभार छीन लिया गया है। जनाधार में सीमित हो रही कांग्रेस में यह एक बड़ी घटना है। मध्यप्रदेश के संदर्भ में एकता की बातें सत्यव्रत चतुर्वेदी ने दिग्विजय सिंह के बारे में इस टिप्पणी के साथ की है कि उन्हें प्रदेश से बाहर कर देना चाहिए। अगर ऐसे ही एकता आ सकती है तो कांग्रेस के युवराज राहुल बाबा को चतुर्वेदियों की मुबारकबाद। लेकिन दिल्ली नगर निगम से लेकर यूपी चुनाव तक जो कांग्रेस का बैंडबाजे के साथ जुलूस निकला है उसके लिए कितने दिग्विजयों की तलाश है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस पानी पी पीकर भाजपा को कोस रही है। लेकिन चैंबरों से बाहर निकल उनके नेता सड़क पर नहीं आ पा रहे हैं। दूसरी तरफ सरकार में बैठी भाजपा सड़क की सियासत में इस कदर मशरूफ है कि वह मंत्रालय में बैठकर सरकार चलाने को राजी नहीं है। मुख्यमंत्री नमामि देवी नर्मदे की यात्रा पर हैं तो कांग्रेस के कर्णधार ए.सी. चैम्बरों में ख्याली ख्वाब में हैं। इसलिए तो कहते हैं मध्यप्रदेश में कांग्रेस अजब है और भाजपा गजब है। वैसे ये नारा एमपी टूरिज्म का है। "एमपी अजब है सबसे गज़ब है"। (लेखक ind24 मप्र/छग समूह के प्रबंध संपादक हैं)

Dakhal News 2 May 2017

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