मोदी की राजनीतिक-मिसाइलें गैर-भाजपाई राज्यों की ओर
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उमेश त्रिवेदी

भाजपा के खिलाफ लामबंद होती राजनीति में विपक्षी दलों के पाले में पल रहे असमंजस और अन्तर्विरोधों के बीच भाजपा ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव का रोडमेप तैयार कर चुकी है। लोकसभा से पहले देश के ग्यारह राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। भुवनेश्वर में भापजा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने दो स्तर पर अपने एजेण्डे पर काम किया है। भाजपा का पहला लक्ष्य 2019 के लोकसभा चुनाव हैं। 2014 की विजय को महाविजय में ढालकर भाजपा केन्द्र में दुबारा सत्तारूढ़ होना चाहती है। दूसरा, भाजपा के सामने बड़ी चुनौती अपने उन केशरिया-दुर्गों को 'एंटी-इकंबेंसी' की महामारी से बचाने के लिए 'वेक्सीन' तैयार करना है, जहां दस-बारह सालों से भाजपा सरकारें कार्यरत हैं। तीसरा, 'भारत-विजय' के मद्देनजर भाजपा ने अपनी राजनीतिक-मिसाइलों को उन राज्यों की ओर भी मोड़ दिया है, जहां पर भाजपा की सरकारें नहीं हैं। 

मौजूदा हालात में भाजपा को भरोसा है कि 2019 में मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे। भाजपा शासित राज्यों में कांग्रेस की पतली हालत के चलते मोदी के विजय-रथ को ज्यादा झटके लगने की उम्मीद नहीं है। गैर-भाजपाई राज्यों में से कर्नाटक में भाजपा अपने लिए परिस्थितियां अनुकूल मानती है, लेकिन बंगाल और उड़ीसा की राहें आसान नहीं हैं। भाजपा को लगता है कि बिहार में नीतीश कुमार पिघल सकते हैं। वो लालू यादव की बैसाखियों पर लंबे समय तक नहीं चल पाएंगे। नीतीश कुमार के साथ राजनीतिक-अनुकूलताएं बनाना सरल है। साल के अंत में चुनाव में जाने वाले गैर-भाजपाई राज्य हिमाचल को लेकर भी भाजपा के सुर बोझिल नहीं हैं। हिमाचल, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा उत्तर-पूर्वी राज्यों की श्रृंखलाओं में सबसे महत्वपूर्ण राज्य हैं। 

बंगाल और ओडिशा की चुनौतियां भले ही तगड़ी हों, लेकिन मतदाताओं के बदलते ट्रेंड के मद्देनजर वहां भी भाजपा का आत्म-विश्वास पंख पसार रहा है। हिन्दुत्व की लहरें बंगाल और ओडिशा में हिन्द महासागर के तटों से टकराना शुरू हो चुकी हैं। दस विधानसभाओं के ताजा उप-चुनाव में बंगाल के नतीजों से भाजपा उत्साहित हैं। 13 अप्रैल को घोषित कॉन्थी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और सीपीएम को पछाड़ते हुए 32 प्रतिशत वोट हासिल करके दूसरा स्थान दर्ज किया है। यह सीट तृणमूल कांग्रेस ने सीपीएम से छीन ली है। बंगाल में भाजपा से कांग्रेस और सीपीएम के पिछड़ने के संकेत मतदाताओं के बदलते मानस का परिचायक हैं।

बंगाल को फतह करने की गरज से आरएसएस ने बंगाल में पैर फैलाना शुरू कर दिए हैं। 2011 में बंगाल में संघ की शाखाओं की संख्या 515 थी, जो अब बढ़कर 1500 हो गई है। संघ अपने अभियान से 'हिन्दू-सेण्टीमेंट्स' को उव्देलित करने में सफल हो रहा है कि जिस तरीके से ममता बैनर्जी मुसलमानों के तुष्टिकरण पर उतारू हैं, वह खतरनाक है। यदि यह क्रम नहीं  रुका तो बंगाल को बंगला-देश बनने से कोई रोक नहीं सकेगा। 

ओडिशा में भी राजनीतिक संकेतों से स्पष्ट है कि राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों में हिन्दुत्ववादी नीतियां ज्यादा प्रभावी हो रही हैं। फरवरी 2017 में ओडिशा में सम्पन्न जिला परिषद के चुनाव में भाजपा ने 854 में से 297 सीटें जीतकर सत्ताधारी बीजू जनता दल के बाद दूसरा स्थान हासिल किया था। ओडिशा में भाजपा की चुनावी-उपलब्धि उप्र विधानसभा चुनाव के शोरशराबे में हाशिए पर चली गई थी। ओडिशा भाजपा के हिन्दुत्व की राजनीतिक-प्रयोगशाला बनने के लिए तैयार है। जिला-परिषदों के चुनाव में भाजपा को उन्हीं आदिवासी-बहुल इलाकों में ज्यादा सफलता मिली है, जहां धर्म-परिवर्तन के विरुध्द संघ और भाजपा मिलकर संघर्ष करते रहे हैं।    

2017 में, जबकि केशरिया उड़ान सातवें आसमान पर है, केन्द्र-सरकार के साथ देश के तेरह राज्यों में भाजपा के तेरह मुख्यमंत्री शासन कर रहे हैं। चार राज्यो में कार्यरत भाजपा की सहयोगी सरकारों को मिलाकर देश के 17 राज्यों में भाजपा का परचम फहरा रहा है। मोदी के भाषणों के दो कोटेशन अक्सर सोशल मीडिया पर दमकते रहते हैं। पहला, प्रधानमंत्री बनने के बाद भ्रष्टाचार निवारण के संदर्भ में उन्होंने कहा था कि 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा ' ... दूसरा, उप्र के विधानसभा चुनाव की सफलता के बाद मोदी ने कहा था कि 'न बैठूंगा, न बैठने दूंगा'।  मोदी के 'खाने-खिलाने' वाले कोटेशन का हिसाब सामने नहीं है, लेकिन जिस शिद्दत से भाजपा कांग्रेस-मुक्त भारत की दिशा में जुटी है, उससे साफ है कि मोदी भाजपा नेताओं को सांस नहीं लेने दे रहे हैं। इसके विपरीत, देश की राजनीति में विपक्ष के गठबंधन की पहल में यह तय नहीं है कि उनके एकीकरण की सैध्दांतिक धुरी क्या हो?  जबकि भाजपा इस दिशा में कूच कर चुकी है...।[उमेश त्रिवेदी, सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।]

Dakhal News 17 April 2017

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