छप्परफाड़ बहुमत का कानफाड़ संदेश
राघवेंद्र सिंह

राघवेंद्र सिंह 

लोग असहमत भी हो सकते हैं मगर यह सच लगता है कि देश को मोदी ही पसंद है। पूर्व में दो राज्यों- दिल्ली, बिहार के चुनाव परिणामों से लगा था कि मोदी ज्वार उतार पर है, मगर उत्तरप्रदेश विधानसभा  में छप्परफाड़ बहुमत का कानफड़ संदेश यही है कि जनता सुराज और शांति चाहती है। मोदी को यूपी में योगी पसंद है तो वोटर को यह मंजूर है मगर जो बातें और वादे हुए हैं वो जमीन पर आने चाहिए। गप्पें...जनता को पसंद नहीं हैं।

मप्र से समेत अन्य राज्यों के लिए जहां अगले साल चुनाव होने हैं यूपी का फैसला सबक के तौर पर देखा जा सकता है। जैसे योगी आदित्यनाथ के सामने यूपी में गुंडों को ठोकना, प्रदेश बदर करना, सफाई और नेता और उनकी जुबान को काबू में रखना बड़ा काम होगा। उद्योगों की स्थापना, रोजगार देने के लिए यूपी के युवाओं के पास अब बहुत धीरज नहीं बचा है इसलिए रिजल्ट नहीं दिए तो बहुमत की दुधारी तलवार उन्हें नुकसान भी पहुंचाएगी। हालांकि ऐसे खतरों से नेता वाकिफ होते हैं और उसके खिलाड़ी भी। हमारी मोदी और योगी दोनों को शुभकामनाएं...बस जो कहा है उसे पूरा करें। बिन मांगी सलाह यह है कि चम्पू नेताओं, चापलूस अफसर और पालतू मीडिया से सावधान रहें...

मप्र समेत राजस्थान और छत्तीसगढ़ के संदर्भ में कह सकते हैं कि अगले साल दिसंबर में चुनाव होंगे। सरकारें और भाजपा (कांग्रेस छोड़कर) चुनावी मोड पर हैं मगर भय, भूख और भ्रष्टाचार के मामले में हालत गंभीर है। भय का मामला तो ऐसा है कि अधिकारियों पर भी रेत चोर बंदूकें तान रहे हैं। लोगों ने यूपी में जिस तरह वोट किया है कांग्रेस का एक नारा मोदी पर फिट बैठ रहा है। पुराने लोगों को पता होगा कि इंदिराजी के जमाने में कहा जाता था- ‘न जात पर न पांत पर इंदिराजी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर।’ यूपी ने मोदी की बात पर कमल का बटन दबाया। उन्होंने कहा था कि न खाऊंगा न खाने दूंगा। इस पर वोटर खासतौर से युवा फिदा हो गया। यूपी जीत के बाद मोदी का नया नारा है, ‘न बैठंूगा, न बैठने दूंगा।’ हमारा कहना है कि राज्यों में उनके पहले नारे का क्या हुआ। लोग खा भी रहे हैं और खाने भी दे रहे हैं, लेकिन मोदीजी इसके भी आगे निकल गए हैं। मध्यप्रदेश में जरूर मोदी के दूसरे नारे का पालन हो रहा है। यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंत्रालय में न बैठ रहे हैं और न उनके मंत्री। नमामि देवी नर्मद यात्रा के जरिए मुख्यमंत्री प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़े हैं। इसे 20 महीने बाद होने वाले चुनाव की रिहर्सल भी माना जा रहा है। ऐसे में चुनावी तैयारी तो हो सकती है लेकिन सुशासन का क्या होगा? मंत्रालय में बैठकर नौकरशाही को जो कसने का वक्त था, उस समय सरकार नर्मदा यात्रा पर है। दलाई लामा और श्री श्री रविशंकर जैसे महान लोगों से यात्रा चकाचौंध हो रही है। लोग नर्मदा किनारेवालों को बता रहे हैं कि नर्मदा को साफ कैसे रखेंगे। एक तरह से यह अंतरराष्ट्रीय अभियान बन गया है। जो काम गांव वालों को करना है उन्हें देशभर के लोग आकर बता रहे हैं। इस दौरान रैलियां, बैठकें, भोजन, भाषण घाटोंघाट हो रहे हैं और चंदाखोर नेता, कार्यकर्ता तैयारियों के नाम पर वसूली में जुट गए हैं। नर्मदा यात्रा के इलाके में प्रशासन ठप सा है। कलेक्टर, तहसीलदार जब पूछो तैयारी के लिए फील्ड में हैं, की लोकेशन देते हैं। दूसरी तरफ किसान परेशान हो रहे हैं क्योंकि तुवर की बंपर पैदावार के बाद सरकार ने उन्हें खरीदने के िलए केंद्र खोले हैं, लेकिन तीन-तीन छन्ने लगने के बाद जो तुवर आ रही है खरीदी सेंटर वाले नमूने फैल कर रहे हैं। अब एक तरफ नर्मदा यात्रा और किसानों की सरकार और हालत यह है कि न नर्मदा बच रही है और न ही किसानों को राहत मिल रही है। कांग्रेस सरकार के अभियान को देखकर सम्मोहित सी बैठी आनंद ले रही है। 

मोदीजी की बात पर भाजपा जीत रही है लेकिन उनके सुशासन के वादे और न खाऊंगा और न खाने दूंगा जैसे नारों पर अमल कौन कराएगा? सरकार में 13 साल से बैठे लोग इस सवाल पर कहते हैं कि जनता बहुत नाराज होगी तो हरा देगी और क्या? अगली बार फिर सरकार में आ जाएंगे। फिलहाल तो हमारे पास मोदी मैजिक है न, इसलिए अभी तो सौ खून माफ।

भाजपा में ‘चमचा पुराण’ 

प्रदेश भाजपा में संघ से आए एक खांटी संगठन मंत्री की खरी-खरी पार्टी में खूब चर्चा का विषय बन रही है। उन्होंने चमचों की महिमा में लंबी बातें सोशल मीडिया में डाली हैं। उसका संक्षेप यह है, कि वह कहते हैं कि चमचा बनने के लिए काफी तपस्या करनी पड़ती है। मसलन, नेताजी जैसे ही ट्रेन से उतरते हैं चमचा उनके सूटकेस को ट्रेन के दरवाजे से ही लपक लेता है। किसी और ने सूटकेस को टच भी किया तो वो उसे खा जाने वाली नजरों से देखता है। इसके बाद नेताजी जिस तरह के समारोह में जाते हैं चमचा अपने चेहरे पर वैसे ही भाव लाता है, जैसे वही गमी में गए तो वो मुंह लटका लेता है, शादी में जाते हैं तो गुलदस्ता लिए रहता है। मजा तो तब आता है जब लीडर भोजन करते हैं तो खाते समय उनके हाथ में चमचा और साइड में खड़े चमचे को देखकर लोग कम्फ्यूज हो जाते हैं कि ओरिजनल कौन सा है। इसी तरह चमचा नेताजी की प्रशंसा करता है और उनके विरोधियों की बड़ी चतुराई से निंदा करता है। इस तरह के बहुत से िकस्से इन संगठन मंत्री की फेसबुक और वॉट्सएप पर हैं। दूसरी तरफ पिछले दिनों प्रदेश भाजपा कार्यालय में एक संगठन मंत्री की हाई प्रोफोइल लाइफस्टाइल खूब चर्चाओं में रही। बस अब प्रतीक्षा इतनी है कि फेसबुक वाले संगठन मंत्री जी जैसे और नेता भाजपा में कब आएंगे।

 

Dakhal News 21 March 2017

Comments

Be First To Comment....

Video
x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved © 2024 Dakhal News.