उड़ी संविधान और परंपरा की धज्जियां
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मप्र भाजपा की नई टीम...किसका है चेहरा, मोहरा और अक्स

राघवेंद्र सिंह

 

एक बात तो साफ होती जा रही है कि जब पार्टी सत्ता में हो तो संगठन सुदृढ़ नहीं होना चाहिए, क्योंकि वह मजबूत होगा तो सवाल करेगा और सरकारें सवाल पसंद नहीं करतीं। पहले कांग्रेस की सरकारें रहीं तब देखा और अब भाजपा की सरकार में यह सब देख सुन और समझ रहे हैं। मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने अपने निर्वाचन के बाद आठवें महीने में प्रदेश पदाधिकारी घोषित किए। यह सामान्य नहीं बल्कि नैतिक दबाव के कारण आपरेशन से हुई डिलेवरी है जिसमें प्रसव पीड़ा जन्म देने वालों को नहीं अपितु पैदा होने वाले या होने की आस में बधाई गीत गाने वालों को ज्यादा हो रही थी। माना जाता है सतमासा या अठमासा जन्म के बाद खुद तो तकलीफ में रहते हैं जन्म देने वाले भी परेशान रहते हैं। मगर होते असाधारण हैं। सब ठीक और शुभ रहा तो 2018 में यह नवजात टीम विधानसभा के चुनाव भी कराएगी। 

 

हमने बात शुरू की थी जब दल की सरकार हो तो कोई भी चीफ मिनिस्टर नहीं चाहेगा,पार्टी अध्यक्ष दमदार हो। सो प्रदेश भाजपा में भी ऐसा कुछ लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अक्सर सियासी जुबान में हुकूमत को पिता कुछ इसे अपनी सुविधा अनुसार पति भी मान सकते हैं और संगठन को मां (पत्नी)। असल में सत्ता मे सीना चौड़ा कर इतराने वाले संगठन की कोख से ही पैदा होते हैं मगर हैरत की बात ये है कि सत्ता-संगठन ने ही जो बाते तय की थीं उनमें से कुछ खास की धज्जियां उड़ा दी गईं। आधी आबादी यानि महिलाओं को संगठन में 33 फीसदी पद देना तय हुआ था। लेकिन 40 सदस्यीय नई टीम में केवल 5 महिलाओं को स्थान मिला है। नंदूभैया की नई टीम में नजर नहीं आया। पार्टी हाईकमान उनसे कमान पूछेगा,पता नहीं ? लेकिन कार्यकर्ता और आमजन अलबत्ता इसकी चर्चा करेंगे। हम तो केवल वादे और की गई बातों को याद दिलाने की गुस्ताखी भर कर रहे हैं।

 

एक व्यक्ति, एक पद का खूब ढोल पीटा गया था। मगर आठ विधायक और अध्यक्ष समेत चार सांसद पदाधिकारी बना दिए गए। अध्यक्ष का पद अपवाद हो सकता है क्योंकि संगठन कह सकता है यह नियम तो हमने ही बनाया था तो जरूरत और सुविधा के मुताबिक तोड़ भी दिया गया। मेरी मर्जी की तर्ज पर। वैसे तो जाति,धर्म,वर्ग और क्षेत्र के आधार पर कुछ नहीं लिखा जाना चाहिए क्योंकि जिम्मेदारी योग्यता के आधार पर दी जानी चाहिए। यह कोई सरकारी काम तो है नहीं कि आरक्षण का पालन नहीं हुआ तो हल्ला शुरू। मगर चार महामंत्रियों में दो सवर्ण अजय प्रताप सिंह और विष्णुदत्त शर्मा के साथ आरक्षित वर्ग के सांसद मनोहर ऊंटवाल तथा बंशीलाल गुर्जर को नियुक्त किया गया। इनमें अजय प्रताप ने संगठन में पदों की लंबी यात्रा करते हुए घाट-घाट का पानी पिया लेकिन विष्णु शर्मा संघ परिवार के खाते से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बाद सीधे नेहरू युवा केन्द्र के उपाध्यक्ष कुछ दिन पहले ही बनाए गए थे। अब उन्हें सीधे भाजपा में प्रदेश महामंत्री के पद से नवाजा गया। मतलब सियासत में सीधे आईएएस। इससे कुछ नेता कुंठा का शिकार भी हो सकते हैं। उनके सीधे अवतरण से जो महामंत्री बनने की कतार में थे या सपना देख रहे थे, वे गाहे-बगाह खुन्नस जरूर निकालेंगे। शर्मा भी जीवट वाले हैं सो इस सियासी कुश्तम पछाड़ का अनुमान पहले ही लगाए बैठे होंगे। वे अपने खलीफाओं से मौके बेमौके दांव सीखेंगे साथ ही उनसे पेंच भी लगवाएंगे। संघ में उनके पैरोकारों को इसके लिए तैयार भी रहना चाहिए। वरना वे एक नेता की भ्रूण हत्या होने के भी साक्षी बनेंगे। 

 

भाजपा की नई टीम पर न तो संघ का असर दिख रहा है और न संगठन परंपरा की छाया। यह किसका चेहरा है पता ही नहीं चल रहा। भाजपा को छोड़ ये नए पदाधिकारियों के चेहरे मोहरे जानकार जिनमें पार्टी को समझने और जानने वाले कहते हैं कि इस पदाधिकारी की नाक सीएम से मिल रही है तो कोई कहता है कि आंखे और मुंह संघ से तो कुछ कहते हैं कि इनका दिलो-दिमाग केन्द्रीय मंत्रियों से मेल खाता है। कम ही लोग कहते हैं भाजपा के इन नए ‘अफसरों’ की शक्ल-सूरत कार्यकर्ताओं से मेल खा रही है। उम्मीद तो यह थी कि संघ से आए संगठन महामंत्री सुहास भगत का अक्स पदाधिकारियों में नजर आता है। संघ से दूल्हा बनाकर भाजपा में भेजे गए भगतजी तो उदासीन अखाड़े के प्रमुख बन वीतरागी जैसे व्यवहार करते दिख रहे हैं। मंत्रिमंडल विस्तार से लेकर पदाधिकारियों के ऐलान तक वे शादी-ब्याह के धूम धड़ाके और सत्ता संगठन के मेले ठेले से दूर स्वयंसेवक की भांति तपस्वी जीवन जीने का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। भाजपा में लोग महसूस करते हैं भगतजी मानो ऐसे सन्यासी हैं जिन्हें गुरू ने आदेश दे संगठन की गृहस्थी में भेज तो दिया मगर उनका मन भोग विलास और ऐश्वर्य में रम नहीं रहा। इससे कई दिक्कतें हैं। एक तो सत्ता सुन्दरी परेशान है वह उपेक्षित महसूस कर रही है। दूसरे सत्ता संगठन के आकांक्षी दुखी हैं क्योंकि दरवाजे के बाहर वर्षों से खड़े हैं और अन्दर आने के संकेत तो मिल रहे हैं मगर अनुमति नहीं। तीसरे स्वयं सुहासजी जो अपने को अभी तक न तो सहज दिखा पा रहे हैं और न भाजपा के भगत बन पा रहे हैं। जबकि सत्तारूढ़ भाजपा के लिए कई पुरुषार्थी और पराक्रमी चांद तारे तोड़ लाने के लिए बेताब हैं।

खैर अभी तो सुहास भगत के लिए संघ के संस्कारों से सराबोर नेताओं, कार्यकर्ताओं को मुख्यधारा में लाकर अपनी मौजूदगी का अहसास कराना है। मगर कैबिनेट विस्तार में उनकी यानि संघ की मर्जी के विपरीत दो आयातित नेताओं को जगह मिलना उन्हें कार्यकर्ताओं और अपनी नजरों में गिराने जैसा था। लेकिन निर्णय करने वालों ने ढिठाई के साथ कहा हमने आयातित नेताओं से कमिटमेन्ट किया था इसलिए मंत्री बनाया। यहीं से भगत के सामने शुरू होती है सिद्धांतो को सड़क पर ला अपमानित करने की कहानी। जिसे कार्यकर्ताओं की भांति नए संगठन महामंत्री ने महसूस भी किया होगा।

 

पंचमुखी संवाद प्रमुख

हम बहुत विस्तार में नहीं जाना चाहते क्योंकि यह तो हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह है। नए पदाधिकारियों में प्रदेश संवाद प्रमुख पद का जितना पराभव हुआ उतना पहले कभी नहीं। पूर्व में यह अकेला पद था। जिसकी शुरूआत में ग्वालियर के प्रभात झा इसके प्रमुख बने। वन मैन आर्मी की तरह। झा इसी रास्ते राज्यसभा में गए और प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद तक पहुंचे। लेकिन हर कोई जो पत्रकार नहीं हैं वे भी संवाद प्रमुख बनने के लिए प्राण-प्रण लगाए रहते हैं। हालांकि घोषित रूप से इस पद के लिए पत्रकार होना जरूरी नहीं है इसलिए डाक्टर हितेष वाजपेयी भी इस पद पर रहे। जिसके चलते कई विवाद भी जन्मे। मसलन उनका दफ्तर न हुआ ओपीडी हो जिसमें मरीजों की तरह पत्रकारों से भी मिलने का टाइम टेबिल तय जैसा था। 

 

अब झा की तरह स्वदेश अखबार से संबद्ध रहे लोकेन्द्र पाराशर को इसकी कमान सौंपी गई है। उनके साथ चार सह संवाद प्रमुख भी नत्थी कर दिए गए हैं। इसे पॉजिटिव लें तो पाराशर ‘पंचमुखी’ हो गए हैं। मगर सियासत में यह सब शुभ नहीं होता। जिसे एक किचिन में कई रसोईया हो जाएं तो समझो खाना खराब। इसकी पुष्टि पाराशर के कार्यभार ग्रहण कार्यक्रम में ही हो गई। उनके दो सह संवाद प्रमुख अपने लीडर की ताजपोशी के वक्त गैरहाजिर थे। और निवरत्तमान संवाद प्रमुख भी मौजूद नहीं थे। क्योंकि उन्हें ताजपोशी समारोह की सूचना नहीं थी। संवादहीनता का यह उदाहरण चिंतनीय है। पार्टी प्रवक्ताओं की जो नई टीम बनी है, उसे हमारी शुभकामनाएं। इसे संगठन ने ठीक वैसे ही सजाया है जैसे सेना में नए रंगरूट। बहुत उत्साही और न थकने वाले । मगर पुराने प्रवक्ताओं को निर्ममता के साथ साफ कर दिया गया। पार्टी का पक्ष रखने वाले अनुभवी प्रवक्ताओं के साथ ऐसा व्यवहार चौंकाने वाला है। यह संकेत है कि पार्टी अपनी लाईन बदल रही है। प्रदेशमंत्री के पद पर ऋषिराज सिंह को सांसद प्रहलाद पटैल की काट के लिए लाया गया है। उनका ताल्लुक लोधी बिरादरी से है और वे टीकमगढ़ क्षेत्र से है। इसी तरह दो महामंत्रियों अरविन्द भदौरिया और विनोद गोंटिया को नई टीम में उपाध्यक्ष बना दिया गया। उपाध्यक्षों का काम पार्टी के फैसलों को मंडल तक ले जाना होता है। इनमें से कुछ को छोड़ बहुतों को तो संगठन की बैठक तक करना आता है इसपर भी संशय है। ऐसे में नई फौज के लिए यह सब सतर्क करने वाला भी है। हम तो अंत में यही कहेंगे ‘जिन दीयों को हवाओं का खौफ नहीं, उन्हें हवाओं से बचाए रखिए।’

Dakhal News 27 August 2016

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