राघवेंद्र सिंह
मध्यप्रदेश भाजपा कार्यकारिणी का गठन छह माह से लंबित है। पुरानी काम चलाऊ कार्यकारिणी से काम चलाया जा रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपनी टीम बनाएंगे, उसके बाद प्रदेश की टीम गठित होगी। आधा साल बीत गया इस चक्कर में। इतनी देर पहले कभी नहीं हुई।
भाजपा में बहुत विचार विमर्श के बाद जो निर्णय या निष्कर्ष आते हैं अक्सर वे खोदा पहाड़ की तर्ज पर निराश करने वाले और जगहसाई के होते हैं। मिसाल के तौर पर ढाई साल बाद शिव कैबिनेट विस्तार में जिन क्षेत्रों से जो हीरे लाए या हटाए गए उससे क्षेत्रीय, जातीय, असंतुलन साफ दिखा। हालांकि उसकी समीक्षाओं में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। यह स्थिति निगम मंडलों में लालबत्ती देने के लिए चुने गए नगीनों की भी रही। इन गल्तियों के साथ विभाग वितरण भी कम भयावह नहीं रहा। इसके विस्तार में फिर कभी जाएंगे। अच्छे परिणामों के लिए विषय विशेषज्ञों के बजाए कमतर काबिलों को महकमों का जिम्मा दिया गया। हालांकि यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। हम किसी मंत्री की काबलियत को कम करना भी नहीं चाहते, लेकिन अच्छे और जल्दी नतीजे चाहिए तो घोड़े पर चुस्त, चालाक, चौकस और ईमानदार सवार भी चाहिए। विस्तार समारोह से लेकर विभाग वितरण आदि ने नाउम्मीद ज्यादा किया है।
प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी की घड़ी लगता है अब निकट आ गई है। वैसे तो कई बार कहा गया कि गठन शीघ्र किया जाएगा मगर नेताओं के आश्वासन पर विश्वास कम रह गया सो जैसा लिखा भी जाता है। हालांकि अधिकत तौर पर यह भी कहा जाता है कि पुराने ही सही प्रदेश पदाधिकारी तो हैं न।
लेकिन नंदूभैया की टीम में कौन आएगा कौन जाएगा इसे लेकर असमंजस ने सबको उदासीन कर रखा है। कार्यकर्ताओं को डर है बहुत मंथन के बाद अमृत कम, विष के ज्यादा निकलने का। पुराने नेता-कार्यकर्ताओं को नई टीम में जगह मिलेगी या मामूली बदलाव के बाद पैराशूट लैंडिंग करने वाले स्काईलेब ही धमाके के साथ आएंगे। सच्चे और अच्छे कार्यकर्ताओं को जगह नहीं मिली तथा निजी समर्थकों की ताजपोशी होती है तो अगले चुनाव की डगर कठिन होती दिखेगी। मिसाल के तौर पर तीन नगरीय चुनावों मंडीदीप, मैहर और ईशागढ़ में भाजपा की एकतरफा हार मनमानी करने वालों को कार्यकर्ताओं की तरफ से जगाने वाला थप्पड़ है। कार्यकर्ताओं में उम्मीद है कार्यकारिणी गठन में पहाड़ खोदने पर चुहिया तो कम से कम नहीं निकलेगी।
उपचुनाव में मंत्रियों को प्रभार
नगरीय निकाय चुनावों में हार से सबक लेते हुए भाजपा ने शहडोल लोकसभा व नेपानगर विधानसभा उपचुनाव में मंत्रियों को प्रभार देने का फैसला किया है। हर विधानसभा क्षेत्र में संगठन के एक पदाधिकारी के साथ मंत्रियों को तैनात किया जाएगा। इधर उत्साहित कांग्रेस भी सक्रिय है। मुकाबला कड़ा हो सकता है। भाजपा चिंतित है क्योंकि उपचुनाव हारे तो प्रदेश भाजपा व मुख्यमंत्री के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए जाएंगे। इसलिए अब उम्मीदवार चयन से लेकर रणनीति बनाने में कोई जोखिम नहीं उठाया जाएगा। कांग्रेस को दोनों जगह खोने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए वह भी बिना दबाव के 20-20 के अंदाज में कुछ प्रयोग कर सकती है।
दीनदयालजी का ताबीज
जनसंघ के संस्थापक और जिनका चिंतन भाजपा की रीढ़ है- पंडित दीनदयाल उपाध्याय का विचार एक ताबीज की तरह है जिसे छाती से लगाने या बांह में बांधने के फायदे ही फायदे होंगे। सो पेश है उनका मंत्र जिसकी उनके अनुयायियों को सख्त जरूरत भी है। छोटी बड़ी बैठक, सभा में उनका नाम लेते नहीं थकते, जिनका दिया अंत्योदय और एकात्म मानववाद भाजपा के लिए गीता रामायण से कम नहीं है। संगठन को लेकर क्या कहते हैं दीनदयालजी उन्हीं के शब्दों में ‘राजनीति के क्षेत्र में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं की आजीविका के लिए व्यवसाय आदि आवश्यक है। जीवन यापन के लिए अनिवार्य है। किन्तु राजनीतिक क्षेत्र में केवल अर्थार्जन के लिए प्रवेश करने वाले या राजनीतिक प्रभाव से अर्थार्जन करने वाले या अर्थार्जन के लिए ही दल में सक्रिय लोग दल और देश दोनों के लिए घातक होते हैं। संगठन में विकार का कारण भी ऐसे ही कार्यकर्ता बनते हैं। कुल मिलाकर अर्थ की चाह संगठन में विकृतियों का द्वार है।’ प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी में ऐसे तत्व नहीं आएं इसका जिम्मा नंदूभैया से लेकर संगठन महामंत्री सुहास भगत, प्रदेश प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे पर है। देखिए आगे-आगे होता है क्या...
जनसंपर्क महकमा याने ‘गरीब की लुगाई’
प्रदेश का जनसंपर्क महकमा कभी मुख्यमंत्रियों के आंख, कान और नाक हुआ करता था। मगर इस आंख के तारे जैसे विभाग की हालत खराब है। यह कई बरस से गरीब की लुगाई की तरह हो गया है जिसके सब मजे ले रहे हैं। हंसी ठिठोली भी उसके साथ और सरकार की बदनामी का ठीकरा भी उसी के माथे। तभी तो सीएम-मंत्री की छवि सुधार का काम बाहरी लोग कर रहे हैं। हद है यह.. जनसंपर्क विभाग का जलवा ऐसा भी था कि आज के पत्रकारों और अफसरों को उस पर यकीन करना मुश्किल होगा। मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह हुआ करते थे। जो खुद कम बोलते थे उनकी आंखों और अंदाज से ही नौकरशाही समझ लेती थी कि करना क्या है। एक किस्सा है अविभाजित मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ का। वहां अफसरों की मीटिंग में अर्जुन सिंह और जनसंपर्क प्रमुख सुदीप बैनर्जी उनके साथ थे। बारिश में आदिवासियों को कैरोसिन की जरूरत ज्यादा होती थी, तब राशन दुकान से मिलने वाले घासलेट की तंगी भी रहती थी सो यह बाजार में कम तो था ही मंहगा भी मिलता था। बैठक में उस समय के जिला जनसंपर्क अधिकारी ने एक पर्ची में लिखा कि घासलेट के दाम कम कर दिए जाएं तो आदिवासियों को इससे राहत मिलेगी। चपरासी को इशारे से बुलाकर यह पर्ची उस अधिकारी ने अपने साहब (याने बैनर्जी) को देने का कहा। चूंकि अर्जुन सिंह और बैनर्जी अगल-बगल ही बैठे थे इसलिए पर्ची साहब याने अर्जुन सिंह को दे दी गई। पहले सरकार में साहब का मतलब अर्जुन सिंह ही माना जाता था। यह देख जनसंपर्क अधिकारी सख्ते में आ गया। उन्होंने मुख्यमंत्री की तरफ कातर भाव से माफी के अंदाज में देखा। इसके बाद अर्जुन सिंह ने अपने संबोधन के दौरान ही चौकाने वाली घोषणा कर दी, कि सरकार घासलेट के दाम में कटौती करती है। यह महत्व था जनसंपर्क अधिकारी का सीएम की नजर में। इसके अलावा जनसंपर्क संचालक या आयुक्त कोई बात सीएम या किसी मंत्री से संकेत में भी कह दे तो न चाहने पर भी उसपर गंभीरता से अमल होता था। क्योंकि यह माना जाता था कि जनसंपर्क से जो बात आ रही है वह सरकार व प्रशासन को लेकर जनता व समाज की जमीनी हकीकत है। तब जनसंपर्क कुछ लोगों के हित साधने के लिए किसी एजेंडे पर काम नहीं करता था। सरकार की छवि चमकाने का काम करता था, जिसमें मुख्यमंत्री के साथ मंत्रिगण भी शामिल होते थे। जनसंपर्क प्रमुख जो कि अपने जिला अधिकारियों से मंत्री व प्रशासन की ग्राउंड रिपोर्ट जब सीएम को देते थे उसके आधार पर अधिकारियों की पोस्टिंग व मंत्रियों के विभाग तक कई दफा तय होते थे। चुनाव के समय भी जनसंपर्क की जिला व कस्बों की रिपोर्ट जिसमें नेताओं के समीकरण, चुनावी गणित,दावेदारों की छवि और सेबोटेज पर आई रिपोर्ट को गंभीरता से लिया जाता था। तब के एल.के. जोशी, सुदीप बैनर्जी, ओ.पी. रावत जैसे जनसंपर्क प्रमुख के नामों की आज भी चर्चा होती है जिन्होंने विभाग की वर्किंग 24 घंटे मीडिया की तर्ज पर रखी थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सचिन तेंदुलकर कहे जाने वाले नरों में उत्तम मिश्रा के पास जनसंपर्क विभाग है। उन्हें मिला है सबकी भौजाई बने इस महकमे की पुन: प्राण प्रतिष्ठा का जिम्मा।[राघवेंद्र सिंह की वॉल से ]