Dakhal News
24 April 2024उमेश त्रिवेदी
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में जारी आंतरिक सत्ता संघर्ष की समाजवादी रामायण में लगता है सपा सुप्रीमो मुलायमसिंह की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता ने अपने सौतेले बेटे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए राजनीतिक वनवास मांग लिया है। साधना की चाहत अपने बेटे और अखिलेश के सौतेले भाई प्रतीक को सिंहासन दिलाने की है। आधुनिक कैकेयी के त्रिया-हठ के आगे सपा ‘दशरथ’ मुलायमसिंह बेबस हैं। वे ‘राम’ अखिलेश को वनवास भी नहीं भेज पा रहे हैं तो अयोध्या में लंका-कांड को अंजाम दे रहे असुरों को नियंत्रित भी नहीं कर पा रहे हैं। अखिलेश आखिरी दम तक कोशिश में लगे हैं कि वे राम की तरह जनता की सहानुभूति बिना राजनीतिक वनवास भोगे हुए ही बटोर लें। फर्क यह है कि वाल्मीकि की रामायण में पुत्र राम ने पिता दशरथ की आज्ञा सिर झुका कर मान ली थी, लेकिन सपा की आधुनिक रामायण में ‘राम’ अखिलेश, पिता ‘दशरथ’ के वर्चस्व को विनम्र लेकिन गंभीर चुनौती दे रहा है। अखिलेश के न्याय युद्ध में चाचा रामगोपाल यादव और आजम खान सहयोगी हैं, तो कैकेयी के ‘षड्यंत्र’ में सगे चाचा शिवपाल यादव और ‘बाहरी’ अमरसिंह की अहम भूमिका है। साधना गुप्ता और सौतेले भाई प्रतीक उनके साथ हैं।
‘समाजवादी रामायण’ का केन्द्र भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या से सवा सौ किलोमीटर दूर स्थित उप्र की राजधानी लखनऊ ही है। पिता-पुत्र के ‘राजनीतिक-विलाप’ और ‘चाचा-भतीजों’ के भरत-मिलाप के आर्तनादी दृश्यों के बीच उप्र की राजनीति ठहरी हुई है। सौतेली मां के प्रकोप, चाचा भतीजे के आरोप तथा यादव खानदान पर अंधेरे का घटाटोप बने अमरसिंह की दुरभिसंधि के आगे कार्यकर्ता हतप्रभ हैं। भौचक्के कार्यकर्ता समझ नहीं पा रहे हैं कि जिस साइकल को सिंहासन पर बिठाया, उसके पहिए रोज पंक्चर हो रहे हैं।
सपा की यह लड़ाई इस मायने में अनूठी है कि नाटक के तीनों मुख्य पात्र परिवार के लोग ही हैं। यहां सभी ‘राम’ उनके हिसाब से ‘न्याय की लड़ाई’ लड़ रहे हैं।
लखनऊ में पार्टी कार्यकर्ताओं की महाबैठक में अखिलेश ने एकतरफ अपने पिता का आज्ञाकारी पुत्र होने का मैसेज दिया, वहीं चाचा शिवपाल की गुलामी से भी साफ इंकार कर दिया। लेकिन विडम्बना यह है कि अखिलेश की भावुक पितृ-भक्ति और आंसुओं से पिता मुलायमसिंह का हृदय ‘दशरथ’ की तरह फटा नहीं जा रहा है। अखिलेश ने अपने संबोधन में कहा कि ‘नेताजी’ का रास्ता हर कोई जानता है। उन्होंने हमें अन्याय के खिलाफ लड़ने का रास्ता दिखाया है। लोग मुझ पर आरोप लगा रहे हैं कि मैं नई पार्टी बना रहा हूं। लेकिन मैं नई पार्टी क्यों बनाऊंगा? हां, अगर कोई साजिश कर रहा है, तो मुझे उसके खिलाफ खड़ा होना होगा। अगर आपने मुझसे इस्तीफा मांगा होता तो मैं दे देता। लेकिन अमरसिंह जैसे लोग मुझे हटाने में लगे थे। राजनीति मेरा कॅरियर है। इसे ही छोड़ दूंगा तो कहां जाऊंगा? असली राम और इस ‘समाजवादी राम’ में मूलभूत अंतर यह है कि उस राम ने पिता की आज्ञा मानकर सीधे जंगल का रूख किया, लेकिन इस राम यानी अखिलेश की कोशिश वर्च्युअल वनवास की स्थिति बना कर लोक सहानुभूति की लहर पैदा करने की है। शिवपाल समझते हैं कि यह आभासी वनवास अखिलेश को सही अर्थों में राजनीतिक-राम बना देगा, इसलिए वो इस घटना को टालना चाहते हैं। उधर इस सत्ता संघर्ष के मूल में सौतेली मां कैकेयी का स्त्री हठ और अमरसिंह का अपना महत्व बनाए रखने की चाल भी है। सौतेली मां अखिलेश की जगह अपने पुत्र प्रतीक को बैठा देखना चाहती हैं। उसके लिए अखिलेश की साढ़े चार साल की उपलब्धि और उसके पूर्व सत्ता परिवर्तन के लिए चलाई साइकिल का कोई मोल नहीं है। मुलायम इस षडयंत्र में बदहवास हैं। वो यह जरूर कह रहे है कि मैं अभी कमजोर नहीं हुआ हूं, लेकिन उनके कंधे लटके हुए हैं। उनका यह दावा दुविधाग्रस्त दशरथ जैसा ही है। वे बेटे को खारिज भी नहीं कर पा रहे हैं और स्वीकारने का साहस भी दिखा नहीं पा रहे हैं। अखिलेश की उपलब्धियों पर मुहर लगाने की बजाए वे अपनी राम-कहानी सुना रहे हैं। इस रामायण का उत्तर कांड क्या होगा, अभी कहना मुश्किल है, लेकिन भविष्य अखिलेश के साथ है। क्योंकि उन्होंने कांच के घर में रहकर भी न्यूनतम राजनीतिक दुश्मन पैदा किए हैं।[लेखक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।]
Dakhal News
26 October 2016
All Rights Reserved © 2024 Dakhal News.
Created By: Medha Innovation & Development
|